________________ E5% नाभाक 61 // भव CHASAKARSANSARGICA-ला 4 अर्थ-हे महाभाग्यशाली! जे में तमने दुःख आप्यु तेनी क्षमा करो, हुं तमारासत्त्वथी संतुष्ट थयो छु,माटे जे तमारे जोइए ते वरदान मागील्यो।। राजाऽवोचन्न याचेह-माप्तधर्मधनः परम् ! परं सीमन्धरस्वामि-निनंसा मम पूरय ::258. // ii चरित्रं अर्थ-राजाए कह्यु के-"में धर्मरूपी अखूट खजानो प्राप्त करेलो होवाथी मारे मागवान काइ रह्यं नथी, पण मारे श्रीसीमंधरस्वामीने वंदन करवानी इच्छा छे ते पूर्ण कराव / / 258 // अथो देव-गुरुन्नत्वा, सत्वाधिकशिरोमणिः। नाकिक्लुप्तविमानेन, विदेहेषु ययौ नृपः // 259 // A अर्थ-त्यार बाद देवे विमान बनाव्युं, तेनी अंदर सत्त्वशाळी पुरुषोमां शिरोमणि नाभाकराजा देव अने गुरुने नमस्कार करी बेठो, है अने देवनी सहायथी ते विमानवडे महाविदेहक्षेत्रमा ज्यां श्रीसीमंधरस्वामी बिराजेला हता त्यां गयो // 259 // / तत्राऽष्टप्रातिहार्यश्री-सेव्यं सीमन्धरं जिनम् / नत्वाऽपृच्छच्चिरत्नो मे-ऽन्तरायः कोऽयमित्यसौ // 26 // | अर्थ-त्यां आठ महापातिहार्यरुप लक्ष्मीवडे सेवाता श्रीसीमन्धर जिनेन्द्रने वंदन करी पूछयु के-'हे प्रभो! मने घणा लांबा काळथी शुं अंतराय कर्म लाग्युं छे?' // 260 // समुद्र-सिंहयो ग-गोष्ठिकस्य च सा कथा / यथा युगन्धराचार्यः, प्रोक्ता स्वामी तथादिशत् // 261 // अर्थ-आ प्रमाणे नाभाकराजानो प्रश्न सांभळी प्रभु श्रीसीमंधरस्वामीए जेवीरीते युगंधराचार्य समुद्रपालसिंह अने नागगोष्ठिकनी कथा कही हती तेवीरीते संपूर्ण कही // 261 // RAC Gunratrasun M. Jun Gun Aaradhak