________________ चरित्रं घी अने साकर नाखी स्वादिष्ट बनावेला धपाक विगेरे मिष्टान्न देखाडी मीठा मीठां प्रीतिपूर्वक वचनो वडे पहेलां तो अनेक अनुकूळ नाभाक उपसर्गो कर्या, अने त्यार पछी अनेक प्रतिकूळ उपसर्गो करवा मांड्या // 251-252 // / तथाप्युक्षुब्धचेताः स, धर्मे यावदवस्थितः।श्रीशत्रुञ्जयभृङस्थं, तावदात्मानमैक्षत // 253 // 60 // अर्थ-ते स्त्रीओए अनेक अनुकूल अने प्रतिकूल उपसर्गो करवा छतां पण ज्यारे अस्खलित चित्तवाळो नाभाक जरा मात्र नहीं डगतां 8 धर्म ध्यानमांज लीन रह्यो, तेवामां पोताने श्रीशत्रुजय पर्वतना शिखर उपर रहेल जोयो / 253 / / / / अहो! किमेतदित्येवं, साश्चयें नृपपुङ्गवे। सौरभ्याकृष्टभृङ्गालिः, पुष्पवृष्टिर्दिवोऽपतत् // 254 // - अर्थ-'अहो! आ ते शुं स्वप्न छे के साचो बनाव छे?' ए प्रमाणे आश्चर्यमां गरकाव बनेलो नृपवर विचार करे छे तेवामां आका-12 शमांथी सुगंधीने लीधे खेंचाइ आवेला भमराओनी पंक्तिथी व्याप्त बनेला पुष्पोनी दृष्टि पडी // 254 // | पुरः सुरः स्फुरत्कान्तिः कश्चित् काञ्चनकुण्डलः। प्रादुर्भूयेत्यभाषिष्ट, कुर्वन् जयजयारवम् // 255 // 18 | अर्थ-तथा तेनी सन्मुख सुवर्णना कुंडल धारण करनार देदीप्यमान कांतिवाळा अने 'जय जय' शब्द करता कोइक देवे प्रगट थइने कह्यु के तव प्रशंसां सद्धर्मन!, सौधर्मस्वामिनिर्मितामा असासहिरहं सर्व-मकार्षमिदमीहशम् // 256 // अर्थ-"हे धार्मिक शिरोमणे! देवलोकमां सौधर्मेन्द्रे करेली तमारी प्रशंसा सहन नहीं थवाथी तमारी परीक्षामाटे में आq सर्व कार्य कयु छे॥ तत् क्षमस्व महाभाग!, यदेवं क्लेशितो भवान् / तुष्टोऽस्मि तव सत्वेन, वरं वृणु वरं वृणु // 257 // 97-%AGAR // 60 // . Gunratnasur M.S. suriM.S. Jun Gun Aaradhak