________________ C KHAR154 ॐद चरित्र 57 // अरेरे! | मने गुरु महाराजे जे अंतराय कर्म कयु हतुं तेज उदयमां आवी पडयुं ? // 238-239 // नाभाक अथवाऽलं विषादेन, श्रीशत्रञ्जयनायकम। नत्वा श्रीऋषभदेव-मादास्ये भक्तपानकम् // 240 It अर्थ-अथवा विशेष खेद करवाथी | वळवार्नु छ?. श्रीशत्रुजय तीर्थना अधिराज भगवान् श्रीआदीश्वरप्रभुने वंदन कर्या बाद हुं 18 भोजन अने जल वापरीश // 240 // निश्चत्येत्यनुपानकः, क्षरद्रक्ताकुलक्रमः। तपःक्रान्तस्तृषाक्लान्तः, परिश्रान्तः क्षुधार्दितः॥ 241 // मध्याहातपसंतप्त-वालकाभिः पथि ज्वलन्। अनिर्विष्णमना देव-ध्यानादेव चचाल सः॥२४२॥ युग्मम् / अर्थ-आ प्रमाणे पोते दृढता पूर्वक नियम ग्रहण करी, पगरखा रहित होवाथी अटवीमां चालतां लोहीथी खरडायेला पगवाळो, तडकाथी आकुल बनेलो, तृषाथी शरीरे ग्लानि पामेलो, चालता चालतां थाकी गयेलो, भूखथी पीडायेलो, अने खरा बपोरना तडकाथी तपी गयेली रेती वडे पगे रस्तामां बळतो छतो पण चित्तमां जरा पण खेद नहीं लावतो ते धैर्यवान् नामाकराजा आदीश्वर प्रभुनु ध्यान धरतो थको आगळ चालवा लाग्यो / 249-242 // अपराहे पुरः क्वापि, कयाचिन्नवनिस्त्रिया। दौकितं न फलमादत, सत्वान्नाऽपि पयः पपौ॥ 243 // 4 अर्थ-राजा अगाडी चाल्यो जायछे तेवामां बपोर पछीना. समयमा कोइक नवीन स्त्रीए आवी तेनी सन्मुख सुंदर फळ तथा शीतल जळ मूक्यु, पण तेने श्रीआदीवरमभुनुं दर्शन कर्या सिवाय काइपण वस्तु खावानो तथा जल पीवानो दृढ नियम होगाथी सत्त्वशाळी 15ॐ . . भEOS DicGunranasuri M.S. LAM un Gun Aaradhak