________________ चरिम 15 अर्थ-देवलोकमांथी च्यवी मनुष्यभवमां आवेलो तुं सर्व कर्मोथी रहित थयो छतोत्रीजा पगथीया रूप केवलज्ञान कामी मोक्षराशिमांप्रवेश करीश नाभा परं तत् प्राक्तनं कर्म, च्छद्मस्थत्वान्न बुध्यते। अतः पृच्छ विदेहेषु, श्रीमत्सीमन्धरं जिनम् // 235 // न अर्थ-परंतु हुं छद्मस्थ होवाथी तें पूर्वे करेलु ते अन्तराय कर्म जाणी शकतो नथी, माटे महाविदेह क्षेत्रमा विराजमान श्रीसीमंधर प्रभुने पूछ" // 56 // प्राप्नोमीहक्कथं राज्ञे-त्युक्ते श्रीगुरवोऽवदन् / भवत्पुण्यप्रभावेण, भवितेत्यचिरादपि // 236 // // 56 // अर्थ-नाभाकराजाए पूछयु के-'श्रसीमंधर स्वामी पासे केवीरीते जवाय?'. त्यारे गुरुमहाराज बोल्या के–'तमारा पुण्यना प्रभा वथी थोडाज वखतमा तमारे त्यां जवानुं थशे' // 236 // 6 एतद्विशेषलाभाया-दिदिशे गुरुणा तदा। अन्यथा केवलिप्रश्नात्, पूर्वविद् बुध्यतेऽखिलम // 237 // है IM अर्थ-ते वखते नाभाक राजाना विशेष लाभ माटे युगंधरमूरिए उपर प्रमाणे को, नहींतर चौद पूर्वना जाणकार तो केवली भग-1] 8 वानने पूख्वाथी सर्व वात जाणी शके छे // 237 // ___अथाऽन्तरायविच्छित्त्यै, पारणाहेऽप्युपोषितः। ईषन्निद्रां गतो याव-जागति स निशात्यये // 238 // 5 तावद्वीक्ष्य महारण्ये, पतितं स्वं व्यचिन्तयत्। हा हा! कथं स एवाऽय-मन्तरायः समापतत्॥२३९॥युग्मम् / अर्थ-त्यार बाद अंतराय कर्मनो विच्छेद करवा माटे राजाए पारणाने दिवसे पण उपवास कर्यो, अने धर्मध्यान पूर्वक रात्रे मुह गयो. 18| थोडी निद्रा करी रात्रिना छेल्ले पहोरे जेवामां जागे छे तेवामां पोताने एक मोटी विकट अटवीमां पडेलो जोइ विचारवा लाग्यो के कलकर Gunratrasuri MS Jun Gun Aaradhak