________________ RREKO मुनेन्सिया सद्यो, मुत्कलागौत्थ भूपतिः / प्राच्य-नव्यादिवृत्तान्तं, पप्रच्छ प्रणिपत्य तम् // 160 // नाभाक 8 अर्थ-मुनिराजनी आवा प्रकारनी गूढ अर्थवळी वाणी सांभळी तेमने बंदन करवानी इच्छाथी राजाएं जलंदी पोताना शरीर उपरथी तहथियार विगेरे उतारी नाखी, मुनिराजने वंदन करी, पाच्य कर्म अने नवीन कर्म विगेरे सर्व बीना पूछी // 16 // // 40 // प्रोचे मुनिरथोऽयोध्या-प्राप्तकेवलिनो मुखात् / देवद्रव्यविनाशस्या-ऽधिकारप्रौढवर्षदि // 161 // त्वत्पूर्वभवसम्बन्धं, त्वबोधं चाऽथभाविनम्। ज्ञात्वाऽऽगत्य वनेऽत्राहं, कायोत्सर्गेण तस्थिवान् ॥१६२॥युग्ममा | अर्थ-मुनिराज बोल्या के-" अयोध्या नगरीमा प्राप्त थयेल केवली भगवानना मुखथी प्रौढ पर्षदामा 'देवद्रव्यनो विनाश करवाथी पाणीने केवी विडंबना भोगववी पडे छे' तेनो अधिकार चालतो हतो, नेमां में तारा पूर्वभवतुं संपूर्ण वृत्तान्त सांभब्यु; अने तुंमाराथीज प्रतिबोध पामीश ए प्रमाणे जाणीने हुं आ वनमां काउसग्ग ध्याने रह्यो हतो / / 161 थी 162 // अर्थ-नृपतिए पूछ्यु के-'स्वामीन् ! मारा पूर्वभवनो शो वृत्तान्त छे ते कृपाकरी जणावो.' त्यारे शांत मुद्राधारी तेमज परोपकारमांज निरंतर परायण मुनिराजे नागगोष्ठिकना भवथी आरंभी अंत सुधी सर्व वृत्तान्त जणाव्यो // 163 // प्राज्यं राज्यं शुद्धदानाद्, दयातो रूपमुत्तमम / दुष्टं कुष्ठं भवद्देहे-ऽभवदेवविलेपनात् // 16 // 8 अर्थ-परोपकार रसिक ते मुनिराजे विशेषमा जणान्यु के-"तें पूर्वे खेडुतना भवमा मुनिने शुद्ध दानथी प्रतिलाभ्या हता, तेना Gunratnasur MS Jun Gun Aaradhak