________________ विलीनमुष्णभक्तना-जानता तन्मयाहृतम् / तेन दुष्कर्मणा सप्त-कृत्वोजातोऽस्मि मण्डनः // 133 // नाभाक & अर्थ-त्यार बाद शिवना मंदिरमाथी नीकळी घेर आवी भोजन करवा बेठो. उष्ण भोजनथी ते नखमांनुं घी ओगळी गयुं, अने चरित्रं द जमतां जमतां अजाणतां ते घी पण भोजन साथे खवाइ गयु. फक्त एटलाज देवद्रव्यर्नु भक्षण करवा रूप दुष्कर्मथी हुं सातवार कू॥३४॥ तराना जन्ममा अवतर्यो / 133 / / // 34 // 12 सप्तमेऽस्मिन् भवे राजन् !, जाता जातिस्मृतिर्मम / अधुना तत्प्रभावेणो-त्पन्ना वाग्मानुषी पुनः // 13 // 4 अर्थ-हे राजन् ! आ सातमा भवमां मने जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न थयु छे, अने हमणां तेना प्रभावथी मने मानुषी वाचा उत्पन्न दथवाथी आ बीना तमारी समक्ष यथार्थ निवेदन करी छे // 144 // अत्रान्तरे गुरुं नत्वा, जगौ नाभाकभूपतिः / श्रुत्वतिह्यमदो बाढं, कम्पते हृदयं मम // 135 // अर्थ-आ प्रमाणे गुरुमहाराजना मुखथी पूर्वोक्त दृष्टान्त सांभळी नाभाकराजाए गुरुमहाराजने नमस्कार करी कयु के–'प्रभो ! आ कथानक सांभळी म्हारुं हृदय घणुंज कपायमान थाय छे' // 135 // गुरुरूचेऽथ यद्येवं, तत्कथामग्रतः शृणु। यथा सम्यक् फलं वेरिस, देवद्रव्यविनाशिनाम् // 136 // अर्थ-त्यारे गुरुमहाराजे कयु के–'जो एम छे तो हवे आगळ नागश्रेष्ठोनी कथा सांभळ, के जेथी देवद्रव्य विनाश करनारने / 15/ केबुं फळ प्राप्त थाय छे तेनुं तने सम्यक् प्रकारे जाणपणुं थाय, अने तेथी तुं सदाने माटे अलग रहे // 136 // ॐAR Jun Gun Aaradhak Gunratnasun M.S