________________ 1567CCI चरित्रं // 33 // तद्घातक विप्रपुत्र, तंत्रानाय्य नृपोऽब्रवीत् / असौ त्वद्घातको बहि, कोऽस्य दण्डो विधीयते? // 129 // नाभाका अर्थ-राजाए तेने मारनार ब्राह्मणना छोकरानी तपास करावी सभामा बोलाव्यो , अने कूतराने कर्दा के-आ तने मारनार छे, ते माटे बोल, आने शुं शिक्षा करवी ?' // 129 // // 33 // - श्वाऽवोचदथ रुदस्य, मठेऽयं हि नियोज्यताम् / क एष दण्डो राक्षेति, पृष्टः श्वा च पुनर्जगो // 130 // अर्थ-कूतराए कछु के-'तेने मात्र एटलीज शिक्षा करो के अहींना शिवना देवालयमां तेनी पूजारी तरीके नीमणुक करो'। आ | प्रमाणे कूतराए कहेलु अयोग्य वचन सांभळी राजाए विस्मित थइ पूछ्यु के-'आ शुं दंड कहेवाय ?' / त्यारे कूतराए पोतानो सर्व सविस्तर वृत्तान्त जणाव्यो के-॥१३० // प्रागहं सप्तजन्मभ्यः, पूजयित्वा सदा शिवम् / देवस्वभीत्या प्रक्षाल्य, पाणी भोजनमाचरम् // 131 अर्थ-हुं मारा आ कूतराना जन्मथी सात भव पहेलां मनुष्य हतो, अने हमेशा शिवनी पूजा करी देवद्रव्य भक्षण करवाना दोषथी 15 डर पामी मारा बन्ने हाथ धोइने जमवा बेसतो हतो // 131 // स्त्यानाज्यमन्यदा लिङ्ग-पूरणे लोकढीकितम् / विकरणेऽस्य काठिन्याद,नखान्तःप्राविशन्मम // 132 / / अर्थ-एक दिवसे लोकोए शिवलिंग पूरवा माटे थीजेलं घी मूक्यु. कठिन होत्राथी ते घी छूटुं पाडतां मार नखमां भराइ गयु // 132 // TEASEACHECRECRUARLATEGORSit 345555 Gunratnasur M.S un Gun Aaradhak