________________ HTTER श्रीमरुतुङ्गशिविरच्छित श्रीनामाकराजायरितम् T REE समद्र-सिंही ज्येष्ठस्त, निर्मला पुण्यवानृणः देवप्रष्येण यत्सीयत्सीय परवारतः। विपर्यस्त:कनिष्ठापदरीकण्टकाविव ॥१५॥मिमिक्लकम।। अनन्तानन्सदु:खाव, तत्मीय जायते पुषम् // 54 // भुर्व खनभ्याताभ्या स्वगृहे स्थूणार्थमन्यथा॥ चैत्यद्रव्यविणासे रिसिधा पावणस्य उदाहे॥ चतुर्विशतिदीनार सहनिधिगप्यत | // 46 // संजश्वचउत्यभंगे मूलग्गी योछिलाभस्स // 55 // . देवतव्यमिदं नाग- गोष्टिकेन निधीकृतम्।। चैत्यद्रव्यविनाशे ऋषिपाते प्रवचनस्य उवधाते। गया शत्रुजये नाग-श्रेयसे दीयते धायः॥ संयतिचतुर्थभंगे मूले निबॉभिलाभस्थ // 56 // श्रुत्वेति जायचा नुन्नः कनीयानित्यवोचत // 5 // पर सेवाघरवास्थ, वर भिक्षावर मृतिः। कन्या वराहा जातासी, पर नोबारिता पुरा।। निवान वीर्षःखाना, नतु पेवस्वभक्षणम् // 57 // धन विनाऽथ तत्प्राप्ती. सोत्सवेन विवायते // 5 // भातुरित्युपदेशेन, मौनी सिंहस्सयोत्थितः॥ बच्या समुद्रः श्रुत्वेति, स्वभावाद् दुष्टधीरसी। एकान्ते भार्ययामाणि, मीनध्यात्वंध्यसे कथम् // 5 // भार्यया प्रेरितो जातो, वात्येरितकृशानुवत् // 50 // कपोलकल्पितर्यबाको नाम न हिपञ्च्यते॥ सर्वशजोऽध्यकृत्यानि कुरुते प्रेरित: सिया। पर यथातथा सर्वम वा वत्स्वतनिधिम् // 5 // स्नेहल वधि मनाति पश्य मन्थानको न किम्॥५४॥ एवं भारित: सिंहो लापनत्रित व्यधात् / देवव्योपयोगेनयोरां यास्यति दुर्गतिम् / अहं पृथग्भविष्यामी-त्युवाच स्वजनामपि // 10 // ततोबन्पुरय बन्धुरयाबोध्यो गिरा मया // 52 // सेवांबलेन वेश्मा निधानाच सोयीत् / निधित्येत्यववद्शातः। पातकात् पातुकात् / समुद्रस्तु सतः शत्रुम्जययात्राधिकीरभूत // 6 // नकि विपि यदेवद्रव्यभोगमपीच्छसि // 5 // निधाना व्यये तीर्थे नागपुण्यार्थमित्यसी। यावच्चलति मिहेन, तावद्राक्षे निवेवितम् // 32 // ER ....HTT 參賽泰讚讚讚讚讚讚蕾[4]竇竇竇竇蕾蕾蕾