________________ श्रीमरुतुझरिधिच्छित श्रीनाप्राकशाजाचरितम् **** पंचा पारा, प्रत्यायाविर समुसत्कृत्य, याभाय व्यसृजन:॥६५॥ अन्वय:- पन्या भविपः तदात्यास बहु सत्ययावायाsira विधरणम्:- चालावा प्रत्य:प्रत्याबप्रत्यर्थम्याथ प्रत्यापायी वसति wayाक्षिक्ष pel नीति धर्मजागान: सदमेपानाधिनतंद्र देवब्यवति, अतिशात्या विविध क्ष असत्य सम्मान्य थाना रामायै व्यसृजद यमुचत् // 65 // अरलार्थ:- धर्मजाजानवरदेवद्रव्य दर्तते इति ज्ञात्वा समुद्र सत्कृत्य तीर्थयात्राधम ब्लषद // 6 // ગુજરાતી :- “હાદેવદ્રવ્ય છે" એમ જાગી છેઝનીતિ પાળનાર અને ધર્મનો શાતા એવા રાજી શો જ સ્ત્રીન્ક02 કરીને જીત્રા માટે વિદાય કપ हिन्दी :- तब " देवद्रव्य है" ऐसाजानकर श्रेष्ठ नीतिका पालन करनेवाले और धर्म को जाननेवाले उस राजाने समुद्र को सब्बाहुमान तीर्थयार के लिये खाना किया।६५॥ मराठी :- क्षार देवद्रव्य आहे" अस झाल्याने नीतीने चालणारा आणि धर्म जाणणान्या अशा त्या राजाने समनाचे स्वागत करून त्याला मार्दवास जास: निरोप दिला.॥४५॥ English :- "This isund wealth is actually God's wealth." By knowing this, observing the best ethic policy and knower of religion such king warmly welcomes Samudra and send him off for the pligrimage with great pomp. अथ विगुणितोत्साहः, समुन्द्रः स्वकुटुम्बथुक्॥ मुहूर्तान्तरमादाय, यात्रार्थ प्रास्थित द्रुतम् // 66 // अन्धयः- अथ शिगुणितोत्साह: समुद्र: मुहूर्तान्तरमादाय स्वकुटुम्बयुक् द्रुतं यात्रार्थ प्रास्थित // 16 // ताथयात्रा