________________ gu धर्मः | वीहिं माणुसीहिं / तिरिकजोणीहिं मेहुणं सवं // धम्मोवगरणवां। परिगहं वोसिरेऽवऊ / / दीका // 37 // सवं असणं पाणं / खाश्मं तह सामं च तिविहेणं // तुम्ह पुरज श्याणिं / वोसिरिमो जावजीवाए // 30 // छ विजावयंश्चेतः-संशुध्या शुधभावनाः // स्मरन् पंचनमस्कारं / नत्या संविममानसः // // 35 // प्रतिजागर्यमाणश्च / रत्नचंण सादरं / सत्वेषु समतां वित्र-ज्जीवित्वा दिनपंचकं // // 40 // यंते समाधिना मृत्वा / जातः कटपे स पंचमे // इंद्रसामानिको देवो / दीर्घायुश्च महठिकः // 1 // त्रिनिर्विशेषकं // यथासौ रत्नचंद्रोऽपि / तं निर्याम्य ननश्चरं // दिची दिशमाश्रित्य / चलितः पर्वतात्ततः // 42 // गबता च कुमारेण / दृष्टमेकत्र सुंदरं / / काननं नागव ख्यादि-नानामंडपसंकुलं // 3 // तस्य मध्ये च शुब्रोच्चः / प्रासादः सुमनोहरः // थारूढः कु. मरस्तत्र / सानंदो गतसाध्वसः // 4 // तत्रापश्यत्सुरूपाढ्यं / सुंदरं कन्यकाइयं // पृष्टे च ते कु. मारेण / के युवां किमुनामिके // 45 // एकाकिन्यौ किमित्यत्र / तिष्टतः कथ्यतां मम // तत्रैका | वक्तुमारब्धा / कंपमानांगयष्टिका // 46 // श्रूयतां जो महासत्व / संक्षेपात्तव कथ्यते // वैताढये P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust