________________ टीका 312 धर्म- तः॥ 30 // दृष्टो मायामये नैष / चर्मकारेण लोचिना // नीतः सगौरवं गेहे / निषलो वरविष्टरे // 30 // पृष्टश्च केन कार्येण / यूयमत्र समागताः // श्रेष्ट्याह वर्धसंधान-हेतवे वयमागताः // // 40 // चर्मकारः पुनः प्राह / किं मे दास्यथ वेतनं / श्रेष्ट्याह किं विचारेण / कुरु कर्म नि राकुलः // 41 // तोषवंतं करिष्यामि / भवंतं रिदानतः // वर्धसंधानतस्तेनो-पानही प्रगुणीकृ. तौ // 42 // वेतने ककिणी दत्ता / न तुष्टश्चर्मकर्मकृत् // रूपकार्ध ततो ऽम्म / एवं यावतं ग. तः // 43 // सहस्रलदकोटीनि-स्तेन तोषमगबता // जाणितश्चर्मकारेण / श्रेष्टिन संस्मर जल्पितं // 4 // तव पोतगते द्रव्ये / निःशेषे मम मंदिरे // प्रविष्टे यदि मे तुष्टिः। संतुष्टि न्यथा मम // 45 // ममाधीनं धनं सर्व / जवान कर्मकरो मम // न दातव्यं न जोक्तव्यं / रक्षणीयं प्र. यत्नतः // 56 // एवमुक्त्वा गतो गेहे / चर्मकारः प्रमोदभृत / / ताराचंद्रो निजं स्थानं / गबन श्रांतः शनैः शनैः // 4 // दृष्टो मदनमंजर्या / वेश्यया वरवेषया // निरूपितश्चिरं कालं / साजिलाषेण चक्षुषा // 4 // दास्या स्वगृहमानीतो / ततो मकरदंष्ट्या // स्नापितो चोजितो दत्त| तांबुलः सविलेपनं / / 4 / नक्तं मदनमंजर्या / सह सुप्तोऽनुरक्तया // प्रजाते कथितं सर्वे / कु. | Jun Gun Aaradhak Trust PP.AC.Gunratnasun M.S.