________________ 356 धर्म नोजनं चद्र / निर्धनत्वान्न विद्यते // 23 // तानि चामूनि विद्या साधनानि-धारोग्यबुधिविनयो| द्यमशास्त्ररागा। अभ्यंतरा जगति पाठगुणा जति // प्राचार्ययुस्तकनिवाससहायवस्त्रा / बाह्याश्व . पंच पठनं परिवर्धयति // 24 // तेनोचे निदयित्वाहं / परिष्ये नवदंतिके // उपाध्यायस्ततः प्रा. ह / वत्सैवं पठनं कुतः // 25 // एवमुक्त्वा समं तेन / गतोऽसौ श्रेष्टिनो गृहं / / शालिनद्रान्निधानस्य / ततश्चैवमभाषत // 7 // कौशांब्या अयमायातो / विद्यार्थी सुहृदंगजः // तदस्य कुरु सा. हाय्यं / त्वमादारप्रदानतः // 7 // श्रेष्टिनापि च तत्तोषा प्रतिपन्नं गुरोर्वचः // भोजनाय ततस्त स्य / दासी तेन निरूपिता // // // अधीते सोऽपि सानंदो / हास्यशीलः स्वभावतः // मोहयौवनसंवास-दोषासमूढमानसः // 10 // कामस्य उर्जयत्वाच्च / तस्यां दास्यां प्रलमवान् // अवोचदन्यदा सा तं / स्नेहेन रहसि स्थितं // 11 // यद्यहं सह केनापि / वस्त्रमूल्याय संवसे // सोढव्यं तत्त्वया कांत / यतस्त्वं तदिवर्जितः // 12 // एवमस्त्विति तेनापि / तद्दचः प्रतिपद्यते // सखेदा चान्यदा तेन / दृष्टा पृष्टा च कारणं // 13 // तयोचे सर्वदासीनां / महः कल्ये भविष्यति // तां बूलादिविहीनाया / लाघवं जाविता मम // 14 // सोऽपि श्रुत्वा वचस्तस्या। विनिद्रो दुःखविह्वलः | P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust