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________________ 300 धर्म | जल्पितं // 72 // अंतःप्रहसता राज्ञा / प्रकाशमुदितं वचः // नलुक्लमुत्करं जांमं / कुरुष्व क्रयः / विक्रयं / / 73 // महाप्रसाद युक्त्वा / वमुसारो गतो गृहं // पोतादुत्तार्य सर्वाणि / मृत्यकर्मकरै| नरैः॥ 14 // गणानि गृहस्यांत-र्मुमोच वसुनंदनः॥ हदि प्रमोदसंयुक्तो / हस्यमानो जनै स्तथा // 35 // जस्मनां महामूल्यं / नीतमेतेन गबता // बागबता समानीतं / प्रतिनांमं करी षकं // 16 // अहो वाणिज्यकौशल्य-महो बुधिरनिंदिता // दत्तो निजे कुलेऽनेन / दारिद्र्यस्य जलांजलिः // 9 // इत्येवं हसते लोको। गृहेऽपि स्वजना निजाः // श्यामितास्या वदंत्येवं / मा विनाशय मंदिरं // 9 // छगणानां बहिः स्थानं / कर्तुं पुत्रक संगतं // न शक्यते मुख धर्तु लोकानां हसतां बहिः // 90 / / मौनस्थितेन तेनापि / कर्तव्यं सकलं कृतं // द्विगुणं वेतनं दत्वा / भृत्यवर्गो विसर्जितः // 17 // गृहशालापणाः सर्वे / कृतास्तालकरदिताः // जट्पन्नुपेदितो लोकः / पत्रकं पुरतः कृतं // 7 // ... अन्यदा नक्तमेकांते / कृते गणपुंजके / ज्वलज्ज्वलनसंपर्का-दत्नीचते मनोरमे // 1 // | स्थालकं रम्यरत्नानां / भृत्वा पाय ढौकितं // पृष्टेन कथितं सर्व / रंजितो हदि नृपतिः // 7 // P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036436
Book TitleDharmratna Karanda Tika Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhamansuri
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1915
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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