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________________ धम- कालं काही तश्या / अठमभत्तेण दुप्पसहो // 30 // नववज्जिहि विमाणे / सागरनामंमि सो | न सोहम्मे / / तत्तो य चयित्ताणं / सिग्निही नीरज जरहे / / 35 // एवं अश्कमंते / वाससहस्से. हिं एकवीसाए / फिट्टिढी लोगधम्मो / अग्गीमग्गो जिणका // 40 // पूचाए संझाए / बोले. ২০ষ | होश चरणधम्मस्स // मन्नने राईणं / अवरह्ने जायतेयस्स // 41 / / पबिमसंझाए नवे / न कुटधम्मदेसधम्माणं // एसो खलु वोज / दूसमचरिमंमि दिवसंमि // 42 // तदिमां दुःप्रमहसूविक्तव्यतामाकर्ण्य न वक्तव्यं संप्रति चारित्रं नास्तीति, तस्य दुःप्रसह एव व्यक्बेद इत्यागमोक्तिरिति. अथैवंविधेऽपि चारित्रप्रतिपादके सर्वजनप्रतीते सिघांतवचने यो मन्येत न संति संप्रति सा. धंव इति तंप्रत्यज्युच्चयमाह.. // मूलम् / / -कृत्यमार्गोपदेष्टारो / यत्र संति न साधवः // न तत्र धर्मनामापि / कुतो धर्मः कुतः क्रिया // 1 // व्याख्या-कृत्यमार्गोपदेष्टारः शुजमार्गोपदेशिका यत्रैकांतदुःषमादौ काले न संति न विद्यते साधवो मुनयः, नामाप्यभिधानमात्रमपि तत्र देशादौ कुतो धर्मस्य ? तर्हि कुतो धर्मः? कुतः क्रिया सदनुष्टानात्मिका ? न कुतोऽपि कारणाजावादिति. // 1 // साधूनेव स्तुवन्नाह P.P.Ac Gunratnasuri M.SI Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036436
Book TitleDharmratna Karanda Tika Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhamansuri
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1915
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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