________________ धर्मः | पुज्जाणं // जवगारिणित्ति तो सा / परिसुघा कहणु होइत्ति // 1 // भन्न जिणपूयाए / काय वहो जवि हो कहिंवि // तहवि हवई परिसुधा / गिहीण. कूयाहरणजोगा // 2 // असयारंन पवत्ता / जं च गिही तेण तेसिं विनेया // तिन्निवित्तिफलच्चिय / एसा परिभावणीयमिणं // 3 // 211 नवगारा नामिवि / पुज्जाणं पूयगस्स नवगारो // मंताश्सरणजलणाश्–सेवणे जह तहेहंपि // 4 // देहानिमित्तंपि हु / जे कायवहंमि तह पयटुंति // जिणपूयाकायवहंमि / तेसि मयवत्तणं मोहो // 5 // इति श्लोकत्रयार्थः. अथ जिनपूजाकरणंप्रत्युपदेशं प्रयबन श्लोकपंचकमाह___॥ मूलम् ॥-रागद्वेषसमुद्भूत-ग्रंथेरत्यंतदुर्निदः // यदि जो भेदने वांछा / कुरुध्वं तङि नार्चनं // 1 // जिनार्चनान्महापुण्यं / महापुण्याच संपदः // संपदः शिष्श्लोकस्य / स्वर्गमोदप्रसाधिकाः // 2 // प्राणैः प्रायो गतप्रायैः / शरीरे विशरारुणि // करिकर्णचले वित्ते / चित्ते चिं तासमाकुले // 3 // एतदेव हि साफल्यं / जन्मजीवितयोर्जनाः // यजिने क्रियते पूजा / त्रिसं. ध्यं शुचेतसा // 4 // जिनं पूजयतो यस्य / यांत्यहानि निरंतरं // तस्यैव सफलं वित्तं / स पु. | मान् स च पंडितः // 5 // व्याख्या-इति श्लोकपंचकं सुगममेव. बघ जिनपूजाप्रणिधानमपि P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust