________________ 250 धर्म-जाणीरेवंविधं वचः // 50 // जीव नंद चिरं कालं / पालयस्व निजाः प्रजाः // चुंक्व त्वं नो मः / टीका हागोगान् / प्रजाजाग्यैः सुरदितः // 11 // श्रुत्वेदं कुमरः प्राह / राजन् मामा नयं कृथाः // एषोऽहं वर्षयाम्यद्य / मेघं पश्य कणांतरं // // 5 // वारंवारं कृतारावं / जनेषु वारयत्स्वपि // दुर्निर्वाह्यां महासत्वः / प्रतिज्ञां कृतवानिमां // // 53 // विशाम्यगौ प्रदी सेऽहं / यदि नाय धराधरं / / वर्षयामि यथावां / युष्माकं पश्यतामहो। // 24 // यतः-प्रारंभो चिय न फुर / अहव समबाण फुर थारंभो // श्रारंभो य समप्प। अहव समडा समप्पंति // 55 // एवं च निश्चयं कृत्वा / यावदास्ते कुमारकः / तावदाणांतरालो. च्चै-रत्रैराबादितं नमः // 16 // ऊंपाभिरुचिता विद्यु-जजूंन्ने गर्जिरंजसा // दृश्यंते पंचव र्णानि / पुरंदरधनूंषि च / / 57 // अतीवस्थूलधाराभिः / प्रवृत्ता वर्षितुं घनाः // अाधारिता दिशः सर्वा / अज्रवातैर्विसर्पिणिः // 27 // केकिनश्च प्रमोदेन / केकायंते दिशोदिशं // पूत्कुति च सानंदाः / सर्वतोऽपि कृषीवलाः // 25 // मालिता चूर्जलप्लावै–विसर्पशिरितस्ततः // पूरितानि पयःपूरैः / सरांसि सुमहात्यपि // 60 // प्रवहंत्यो महारावैः / श्रूयते नैव जटिपतं // पीडयंत्यस्तः | - PP.AC.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust