________________ धर्मः श्चिमैः पादै-दृष्टिं रदान दिवाकरात् // 24 // कुमारोऽपि गतो दूरं / प्रविष्टः शून्यपत्तने // तत्रापि / च मठे शून्ये / संप्राप्तश्च निशाचरः // 25 // रदासोक्तं समागल / नागामि तवांतिकं / / यद्यर्थी च तदागब / त्वमेव हि ममांतिकं // 26 // तेनोक्तं च न शक्नोमि / समागंतुं तवांतिकं // कि. ... 114 मर्थ कथितं तेन / रहस्यं रदसापि च // 27 // येयं बलानके व्यक्ता / करोटी दृश्यते त्वया // | योगिनो मंत्रसिधस्य / सास्माकं दुरतिक्रमा // 2 // इदं तत्वं परिझाय / गृहीता कुमरेण सा / / रावसानिमुखं सोऽथ / गतो नष्टो निशाचरः // 25 // यैः पदैः स समायात-तैरेव चलितो हुतं // कृतांजलिर्जगादेदं / राजपुत्रं निशाचरः // 30 // सौजाग्यसुंदरं नाम / रत्नमेतत्करे कुरु // अनेन कंटलमेन / स्त्रीप्रियस्त्वं नविष्यसि // 31 // त्रयाणामपि सिंधूनां / सारता मनोहरा // मुक्तावली त्वया ग्राह्या / मदनुग्रहकाम्यया // 3 // प्रयोजने समुत्पन्ने / स्मर्तव्योऽहं सदा त्वया // संदोजो नैव कर्तव्यो / यतोऽहं तव किंकरः // 33 // शृण्वन्नित्यादिवृत्तांतान् / कार्पटिकैः प्रजल्पितान् // नीत्वा रात्रि मठे तत्र / प्रगेऽसौ रत्नसुंदरः / / | // 34 // सविस्मयस्ततः स्थानात् / पुरिमतालपुरे गतः / / अत्रांतरे मृतस्तत्र / निस्संतानो नरेश्व P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust