________________ 115 धर्मः श्रधान्यस्मिन् दिने तस्य / पढतो गुरुसन्निधौ // प्रबद्भियिते तत्व-मिदं वाक्यमुपागतं // 1 // | गृहीतं तत्वबुध्या च / तोक्यं नृपसूनुना // अध्यापककरस्तत्र / गत्राणां सर्वदाप्ययं // 2 // श. तानि पंच पूलाना-मानेतव्यानि बाह्यतः // विचारो नैव कर्तव्यो / गुरुवाक्यमिदं यतः // 3 // अध्यापकगृहे नास्ति / गत्राः किंचिचतुष्पदं // एतां चरति कश्चारि / बेत मे कौतुकं महत् // कुमारो नणितश्गत्रै-न वयं तप्तिकारकाः // त्वमिव परगेहेषु / किंत्वादिष्टविधायकाः // 5 // कु. मारेणान्यदा रात्रौ / प्रबन्नेन निरीदितं // अध्यापकजनी दृष्टा / गवंती गृहपृष्टतः // 6 // विधाय करजापं सा / कृत्वां प्रश्रवणं त्रुवि // तस्योपरि लुरित्वा च / जाता सपदि रासनी // 9 // कुतमेंव तया सर्वे / जदितास्तृणपूलकाः // चूयोऽपि सहजा जाता / कुमारेण विलोकिता // 7 // कथितं शेषछात्राणां / यथेयं नैव जाद्रिका // यात्मा प्रत्यहमेतस्या / रदणीयः प्रयत्नतः // 7 // विकाले तृणपूलांश्च / लातुं छात्राः समागताः // अटव्यां लब्धलदत्वाद् / गृहीत्वा पुनरागताः / / // 10 // अनन्निज्ञः कुमारस्तु / ब्रमन् प्राप्तो महाटवीं // क्षुत्दामकुदिना दृष्टो / रादसेन दुरात्मना | // 11 // भणितस्तेन रे पृष्टे / मामारोपय सत्वरं // आरोपितः कुमारेण / पूर्वामनु चचाल सः // PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust