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________________ श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र में रखते हैं / उसकी सेवा में एक उपमाता दी गई है। वही उसका लालनपालन करती हैं। राजकुमार को पढ़ाने के लिए एक पंडितजी आते हैं। लेकिन वे भी राजकुमार से दूर बैठते हैं और एक पर्दा बीच में रखकर कुमार को पढ़ा कर जाते हैं। पंडितजी ने भी अब तक कुमार के दर्शन नहीं किए हैं / इसलिए तुम लोग इस समय कुमार के दर्शन के बारे में आग्रह मत रखो / अब कुछ ही समय के बाद जब हम बरात लेकर विमलापुरी आएँगे, तो क्या तुम सबको उसके दर्शन नहीं होंगे ?" इतना समझाने के बाद भी मंत्रियों के मन को संतोष नहीं हुआ। इसलिए उन सबने कुमार के दर्शन का आग्रह बनाए रखा। _ मैंने सोचा, अब यदि मंत्रियों को कुमार के दर्शन कराए जाए, तो सारा भेद खुल जाएगा और जगत में बडी फजीहत होगी। इसलिए मैंने विमलापुरी के चारो मंत्रियों को अपने महल में बुला लिया। मैंने उनका खूब खुल कर स्वागत किया, उनको मिष्टान्नों का भोजन कराया। उनको प्रसन्न करने के लिए मैंने अपनी और से भरसक कोशिश की, लेकिन व्यर्थ ! मंत्री तो जिद पकडकर बैठे कि राजकुमार के दर्शन किए बिना हम यहां से नहीं जाएँगे। हमारे महाराज ने हमें यह आदेश दिया था कि राजकमार को प्रत्यक्ष देख कर ही राजकमारी प्रेमलालच्छी से उसका विवाहसंबंध निश्चित कीजिए / अब हमने विवाहसंबंध तो निश्चित कर लिया, लेकिन राजकुमार के दर्शन करना अभी बाकी है। यदि हम राजकुमार के दर्शन किए बिना विमलापुरी लौट जाएँ और यदि महाराज हम से पूछे कि 'क्या राजकुमार का रुपसौंदर्य जैसा हमने सुना था, वैसा ही हैं न / तुम उसको प्रत्यक्ष रूप में देखकर आए हो न ?' तो हम क्या उत्तर देंगे ? इसलिए आप चाहे जिस प्रकार से हो, लेकिन हमें एक बार राजकुमार के दर्शन अवश्य कराइए / _आखिर कोई उपाय बचा हुआ न देख कर मैं ने विवश होकर अंतिम उपाय किया। मैं ने दिखाई। फिर मैंने उन मंत्रियों से बिनती की कि अब तुम लोग राजकुमार को देखने का आग्रह छाड़ कर विमलापुरी लौट जाइए। मैने सचमुच उन चारों मंत्रियों को एक-एक करोड़ सुवर्णमुहरे गिन कर दे दी। इतना सारा धन अनयास मिलता देख कर चारों मंत्री बहुत खुश हो गए / अब उनके मुँह पर ताला-सा लग गया। अब वे सब-के-सब राजकुमार को देखने का आग्रह छोड कर शांत हो गए। इस जगत् में लोभ से वश न होनेवाले जीव विरले ही होते हैं / वास्तव में लगभग सारा जगत् लोभरुपी समुद्र में डूबा हुआ है। लोभ ही सभी पापों का बाप है। माया सभी पापों को जन्म देनेवाली माँ है। सभी अकार्यो के मूल में यह माया लोभ की जोड़ी हो होती हैं। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun.Gun Aaradhak Trust.
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
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