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________________ 250 श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र धीरे-धीरे मध्यान्ह का समय हुआ। साध्वीजी आहार-पानी लेने के उद्देश्य से मंत्रीपुत्री रुपवती के घर आई / साध्वीजी के घर में पधारने पर मंत्रीपुत्री बहुत प्रसन्नता से तुरन्त उठ खड़ी हुई। पहले उसने साध्वीजी को भावपूर्वक वंदना की। माला गूंथने का अपना काम रोक कर वह साध्वीजी को आहारपानी परोसने के लिए घर में चली गई। जाते समय उसने अपने हाथ में होनेवाला मोतियों का बनाया हुआ कर्णफूल राजकुमारी के सामने एक थाली में रखा था। . घर के भीतर जाकर उसने साध्विजी को भक्तिभाव से पकवान्, घी आदि चीजें परोसी / फिर स्वयं को धन्य-धन्य मानती हुई उसने अपने मन में यह विचार किया कि जो वस्तु ऐसे सुपात्र में दी जाए तो वह सफल होती हैं / इस संसार में ऐसे सुपात्र का संयोग मिलना अत्यंत दुर्लभ है। मेरा प्रबल पुण्योदय होने से ही मुझे ऐसे सुपात्र की भक्ति करने का यह परमसौभाग्य प्राप्त हुआ है। प्रतिदिन ऐसा लाभ मिलता रहे, तो वह बहुत ही अच्छी बात है / सुपात्र की भक्ति करने से पाप का पुंज नष्ट होता है और पुण्य के पुंज की प्राप्ती होती है। इससे धीरे-धीरे क्रमश: मोक्षसुख की प्राप्ति हो जाती है। इसलिए जो अविवेकी होता है वही ऐसी महाव्रतधारी साध्वियों की निंदा करता है। ___ लेकिन राजकुमारी के मन में तो जैन साध्वियों के प्रति बहुत ईर्ष्या-द्वेष का भाव था। इसलिए जैन साध्वी पर झूठा इल्जाम लगा कर उसे बदनाम करने की और ये जैन साध्वियाँ कैसे छलकपट करके चोरियाँ करती हैं, यह मंत्रीपुत्री को प्रत्यक्ष दिखाने की इच्छा राजपुत्री तिलकमंजरी के मन में उत्पन्न हुई / उसने सोचा कि ऐसा कर दिखाने के लिए यह अच्छा अवसर है। इसलिए उसने झट से एक षड्यंत्र रचा। साध्वीजी को घी की आवश्यकता थी। घी लाने के लिए रुपवती घर में चली गई थी और साध्वीजी उसकी प्रतीक्षा करते हुए दरवाजे के बाहर खड़ी थीं। राजपुत्री ने अपना मौका साधा / वह चुपचाप साध्वीजी के पास वह थाल में पड़ा हुआ कर्णफूल उठा कर ले गई और उसने साध्वीजी की समझ में न आए इस रीति से उनके कपड़े के लटकनेवाले छोर में वह कर्णफूल बाँध दिया। यह काम होते ही वह फिर चुपचाप वहीं चली गई, जहाँ वह पहले बैठ कर मंत्रीपुत्री से गप्पें लड़ा रही थी और अनजान होने का बहाना बना कर बैठ गई। साध्वीजी का ध्यान तो आहारपानी ग्रहण करने की ओर था। इसलिए उनको इस बात का पता भी न चला कि राजपुत्री ने कब उनके निकट आ कर उनके कपड़े के लटकनेवाले छोर में कर्णफूल बाँध दिया। राजकुमारी द्वारा किया गया यह छलकपट रुपवती के भी ध्यान में उस समय नहीं आ सका। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
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