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________________ श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र 185 प्रेमला ने अब अपने निश्चय के अनुसार सिद्धाचलजी की यात्रा के लिए जाने को अपने पिता से आज्ञा ले ली। उसने अपनी अनेक सखियों को अपने साथ ले लिया और एक दिन शुभ मुहूर्त देख कर उसने शत्रुजय की ओर प्रस्थान किया। उसने अपने साथ सोने के पिंजड़े में मुर्गे को भी ले लिया था। सिद्धगिरि की चढ़ाई चढ़ते-चढ़ते प्रेमला ने मुर्गे को पिंजड़े में से बाहर निकाला और उसे हार्दिक प्रेमभाव के साथ अपने हाथ पर बिठाया / जब मुर्गे ने तीर्थधिराज सिद्धचलजी का प्राकृतिक सुंदरता से घिरा हुआ द्रश्य देखा, तो वह आनंद विभोर हो गया। इस महा तीर्थक्षेत्र का दर्शन करने का अवसर प्राप्त होने से वह अपने जीवन को सार्थक मानता रहा। सिद्धगिरि ऐसा महान् तीर्थाधिराज है कि उसे देखते ही पाप का पुंज पलायन कर जाते हैं। उसे प्रणाम करने से दुर्गति के दरवाजे बंद हो जाते हैं। अनंत मुनियों ने इस तीर्थक्षेत्र पर आकर अनशन किया और शाश्वत सुख का धाम ही होनेवाली मोक्षलक्ष्मी को प्राप्त कर लिया। प्रेमला ने सिद्धगिरि पर ऊपर और ऊँचाई की ओर चढ़ते-चढ़ते शिवपद के शिखर के समान होनेवाला श्री ऋषभदेव भगवान का मंदिर देखा / मानो मोक्षमंदिर में प्रवेश कर रही हो, ऐसी रीति से प्रेमला ने अपनी सभी सखियों और मुर्गे के साथ भगवान ऋषभदेव के मंदिर में तीन बार निसीहि कह कर हर्ष के साथ प्रवेश किया। मंदिर में प्रवेश करने के बाद उसने युगादिदेव ऋषभदेव भगवान की तीन परिक्रमाएँ की। फिर भगवान के दर्शन वंदन-स्तुति का गान करके उसने प्रथम तीर्थकर भगवान की अष्टम प्रकारी पुजा की / मुर्गा भी ऋषभदेव के दर्शन के हर्ष से नाच उठा / मूलनायक ऋषभदेव भगवान की भक्ति कर प्रेमला मुख्य मंदिरों से बाहर निकली। मुर्गे के साथ वह अन्य-अन्य मंदिर में गई और वहाँ दर्शन-वंदन-स्तुति करके सब मिल कर खिरनी के पेड़ के पास आई। ऋषभदेव भगवान के चरणरज से पवित्र हुए इस वृक्ष की तीन परिक्रमाएँ करके उन्होंने वृक्ष को वंदन की। फिर ऋषभदेव भगवान की पादुकाओं को प्रणाम कर प्रेमला अपनी सखियों के साथ मुर्गे को लेकर घूमते-घूमते सूरजकुंड देखने के लिए चली गई। सब सखियाँ सूरजकुंड के पास पहुंच गई। निर्मल जल से भरपूर, कमलपुष्पों से सुशोभित होनेवाले सूरजकुंड को देख कर प्रेमला को प्रतीत हुआ कि यह तो समतारस से भरपूर होनेवाला कुंड है। सुंदर सूरजकुंड के पवित्रजल को स्पर्श कर प्रसन्न हुई प्रेमला वहाँ सूरजकुंड के किनारे पर अपनी सखियों के साथ बैठी। P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
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