________________ / चन्द्रराजर्षि चरित्र 177 गों की तरह आपका लालन पालन किया है। अनजाने में भी मैंने आपके प्रति कोई अपराध किया हैं / आपके कारण तो हमने अनेक राजा-महाराजाओं को नाराज भी किया है। मैं तो फ्को निरंतर अपने सिर पर लेकर ही घूमती हूँ। फिर भी यह बात मेरी समझ में ही नहीं ता है कि आप सोलह वर्षों के हमारे प्रेम के संबंध को त्याग कर यहाँ विमलापुरी में प्रेमला के च रहने के लिए एकदम कैसे तैयार हो गए ? : हे स्वामी, आप ही के आदेश से मैंने वीरमती से अन्य कोई इनाम न माँग कर आपको पलिया था। आपने भी अभी तक हमारे प्रति गहरे स्नेहभाव का संबंध बनाए रखा / अब ज ही आप हमसे अलग होने के लिए क्यों उत्सुक हो गए हैं ? आपके चले जाने के बाद मैं सकी सेवा करके अनुपम सुख पाऊँगी ? आप किसी ठग के मायाजाल में तो नहीं फँस गए हैं ? आज आपअचानक हमारे प्रति इतने नि:स्पृह क्यों बन गए हैं ? यदि आपको एक दिन हमसे तरह दूर ही होना था, तो हमारे प्रति इतना स्नेहभाव बताने की आवश्यकता ही क्या थी ? __ शिवमाला के अत्यंत तिलमिला कर कहे हुए इन दुःखपूर्ण वचनों को सुन कर चंद्र राजा ग) ने कहा, हे शिवमाला, तू ऐसा क्यों बोलती है ? देख, मैं कोई अज्ञानी जीव नहीं हूँ। मैं बकुछ जानता हूँ। मैं बहुत अच्छी तरह से जानता हूँ कि सज्जन की संगति समाप्त होना ष्यको काँटा चुभने की तरह दुःखदायी होती है। हे शिवमाला, तेरा मेरे प्रति जो स्नेह है वह आद्वितीय है, अवर्णनीय है। इस संबंध में मेरे मन में कोई आशंका नहीं है। तने प्राणघाती पत्ति में मेरी न केवल रक्षा ही की है, बल्कि दिनरात गहरे स्नेहभाव से मेरी सेवाटहल की है, लालनपालन किया है। तेरी सेवा में मैंने कभी स्वार्थभाव नहीं देखा। अब तक तूने अपने व का विचार तक नहीं किया। तूने हरदम मेरे ही सुख और सुरक्षा की चिंता की है, विचार या है। इसलिए हे शिवमाला, तेरी वर्षों की नि:स्वार्थ सेवा का बदला चुकाना तो मेरे वश को त नहीं है / इस दृष्टि से मैं बिलकुल असमर्थ हूँ। लेकिन मैं तुझे वचन देता हूँ कि अवसर इन पर मैं तेरी और तेरे पिता की अवश्य कद्र करूँगा। तेरा और तेरे पिता का दिया हुआ प्रेम आजीवन नहीं भूल सकूँगा / मैं बहुत अच्छी तरह जानता हूँ कि सोलह वर्षों के स्नेह को ड़ना महा कठिन काम है। वैसे शिवमाला, तेरी संगति तो मुझे मेरे सौभाग्य के कारण ही मिली / ऐसी संगति का . त्याग करने की इच्छा तो वास्तव में किसी मूर्ख के मन में भी नहीं आ सकती। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust