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________________ चन्द्रराजर्षि चरित्र 157 . पिता का प्रश्न सन कर लीलाधर ने उत्तर दिया "पिताजी मेरा न किसीने अपमान किसान मुझे दु:ख दिया है। लेकिन पिताजी, मेरे मन में धन कमाने के लिए विदेश का प्रबल इच्छा जागी है। इसलिए आप मुझे विदेश जाने की आज्ञा दीजिए।" पुत्र के मुँह से अचानक विदेश जाने की बात सन कर धनद सेठ ने आश्चर्यान्वित होकर हा, "बेटा, क्या हमारे घर में धन की कोई कमी है तेरे मन में धन कमाने के लिए विदेश जाने २च्छा क्या उत्पन्न हुई है ? फिर तेरी उम्र ही कितनी है ? इसमें अभी-अभी तो तेरा विवाह हमार घर में धन-धान्य का कोई अभाव नहीं है। इसलिए इस समय तेरा विदेश जाना लकुल उचित नहीं है।" ___ पिता का उपदेश सुन कर लीलाधर ने शांति से संन्यासी के साथ हुई अपनी सारी तिचीत कह सुनाई। उसने पिता को बताया कि संन्यासी के टकसाली वचनों का मुझ पर गहरा माव हा गया है। मेरे हृदय पर संन्यासी के वचन अंकित हो गए हैं। इसलिए मेरे विदेश जाने 5 निर्णय में कोई हेरफेर होना संभव नहीं है। आप मुझे खुशी से आज्ञा दीजिए, पिताज ... बाद सठ ने अनेक युक्तियों से अपने पत्र लीलाधर को समझाने का प्रयत्न किया। नाकन उनके सारे प्रयत्न व्यर्थ सिद्ध हो गए। इसके बाद लीलाधर की माता, उसके ससुर तथा न भी अनेक प्रकारों से उसे समझाया लेकिन लीलाधर अपने दृढ़ संकल्प से जरा भी वचलित नहीं हुआ, इस विरोध से उसका संकल्प और दृढ़ हो गया। लीलाधर के इस संकल्प की तरह यदि मनुष्य संन्यास दीक्षा लेने और मोक्षप्राप्त का कल्प करे तो सचमुच उसका बेड़ा पार हो जाए। न लीलाधर ने अपने मन में धन कमाने के लिए विदेश जाने का दृढ़ संकल्प कर लिया पूसर दिन रात को वह अपने शयनगह में जाकर अपनी खाट पर बैठ कर विचारमग्न हो / स्तन में सोने का समय होने से उसकी पत्नी लीलावती सोलह शृंगार से सज कर, पाँवों [ पायलियाँ रुमझुम बजाती हुई, गजगामिनी गति से चलती हुई और विलास के लिए अपनी प्छा प्रकट करती हुई, हावभाव दिखाते हुए अपने पति लीलाधर के पास आ पहुँची। लेकिन बादश में जाने के विचारों में डूबे हुँ लीलाधर ने अपनी पत्नी की ओर आँखें उठा कर देखा भी ही। इससे लीलावती की हँसोविनोद की बातें करने की इच्छा पर पानी फिर गया। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
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