________________ 152 श्री चन्द्रराजर्षि चरि= शिवमाला चंद्र राजा के (मुर्गे के) पिंजड़े को सिर पर रखकर देश-विदेश में घूमत हु - विपुल धनसंपत्ति कमाने लगी। इससे 'एक पंथ दो काज' वाली कहावत चरितार्थ होने लगा। शिवमाला प्रतिदिन अपने हाथों से मुर्गे को विविध प्रकार की स्वादिष्ट मिठाइयाँ खिलाता था। वह मुर्गे की अपने प्राणों से भी बढ़ कर रक्षा करती थी। एक बार नटराज शिवकुमार और शिवमाला की यह नटमंडली धरती पर भ्रमण करता करते वंग देश के पृथ्वीभूषण नामक नगर में आ पहुँची। उस समय इस पृथ्वीभूषण नगरप अरिमर्दन नाम का राजा राज्य कर रहा था। इस राजा के मन में चंद्र राजा के पिता के प्रति परप्रेम का भाव था। नटों ने इस नगर में एक अच्छा-सा स्थान देख कर वहाँ अपना डेरा डाला सुंदर वस्त्रों से वहाँ एक घर बना कर वहाँ उन्होंने सिंहासन की स्थापना की। इस सिंहासन पर उन्होंने बड़े सम्मान से मुर्गे का सोने का पिंजड़ा रख दिया। नट मंडली के इस समारोह का दर कर पृथ्वीभूषण नगरवासियों को ऐसा लगा कि यह तो किसी बड़े राजा का डेरा दिखाई देता। अरिमर्दन राजा को पहले ही यह पता चल गया था कि उसकी नगरी में नटमंडला के आगमन हो गया है। इसलिए राजा ने नटमंडली के प्रमुख शिवकुमार की संदेश भेज कर उस अपनी मंडली की नाटयकला दिखाने का आदेश दिया. आदेश मिलते ही शिवकुमार अपने पार होनेवाले मुर्गे के पिंजड़े के साथ राजदरबार में आ पहुँचा / उसने मुर्गे को प्रणाम किया आ अपनी नाटयकला राजा और अन्य दरबारियों के सामने प्रस्तुत की। नाटयमंडली की कला दर कर राजा अरिमर्दन के प्रसन्न होकर उसे बहुत बड़ा इनाम दे दिया। नटमंडली के साथ होनेवाले मुर्गे को और उसके अद्भुत सौंदर्य और एश्वर्य को दर कर आश्चर्यचकित हुए राजा अरिमर्दन ने नटराज शिवकुमार से पूछा, “नटराज, यह मु' कौन है ? तुम लोग उसे इतना बड़ा सम्मान क्यों देते हो ?" राजा का प्रश्न सुन कर नटराज शिवकुमार ने संक्षेप में सारी वस्तुस्थिति कह सुनाई मुर्गे के बारे में शिवकुमार से सारी बातें जान कर जब अरिमदन राजा को विश्वास हो गया। यही राजा चंद्र है, तो वह मुर्गे के चरणों पर गिरा, उसने मुर्गे को विनम्रता से प्रणाम किया अ उसने मुर्गे के सामने मूल्यवान् हीरे-माणिक-मोती और सुवर्ण के आभूषण, हाथी, घोड़े, पाल आदि का नजराना सादर प्रस्तुत किया और वह मुर्गे से संबोधित कर कहने लगा, “हे वीरशिरोमा P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust