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________________ श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र 141 शिवकुमार का इनाम में मुर्गा ही पाने का बहुत आग्रह देख कर अंत में शिवकुमार को इनाम के रूप में मुर्गा देने को वीरमती तैयार हो गई। उसने अपने मंत्री सुबुद्धि को गुणावली के पास मुर्गा लाने को भेज दिया। यह मुर्गा इस रूप में जाना वीरमती को पसंद ही था और वही अनायास हो रहा था। मंत्री सुबुद्धि वीरमती की आज्ञा के अनुसार तुरन्त गुणावली के पास जा पहुंचे। उन्होंने सारा समाचार गुणावली को कह सुनाया। उन्होंने यह बी बात गुणावली को बताई कि 'अपने स्वामी को इस रूप में अपने पास रखने को अपेक्षा उन्हें नटराज को सौंप देने में ही भलाई है। वारमती तो आपके पति की एक नंबर की शत्र है। वे तो आपके पति के प्राण हरण करने की ताक में ही है। आप इस बात से बहुत अच्छी तरह परिचित है। इसलिए हे रानी, मेरी आपसे विनम्र प्रार्थना है कि आप अपने स्वामी मुर्गे को नटराज के हाथों में खुशी से सोंप दीजिए। इसीमें आपकी अपने स्वामी की सच्ची सेवा होगी। नटराज शिवकुमार और उसकी पुत्री शिवमाला आपके पति मुर्गे की अपने प्राणों से भी बढ़ कर रक्षा करेंगी।" - मंत्री की सारी बातें सुनने के बाद गुणावली ने मंत्री से कहा, “हे मंत्रीजी, यद्यपि आपकी बात शब्दशः सत्य है, लेकिन अपने प्राणाधार को नटराज के हाथों में सौंपने को मेरा जी नहीं चाहता। वे मुर्गे के रूप में ही सही, लेकिन इस समय मेरे पास हैं, इसलिए उनको देख-देख कर / में अपनी आँखों को तृप्त करती हूँ। उनको देख कर मेरे हृदय को बहुत खुशी मिलती है। अगर वे नटराज के साथ जाएंगे, तो मेरा सर्वस्व ही लुट जाएगा। उनके वियोग में अपने दिन बिताना मेरे लिए बहुत कठिन होगा। इसलिए आप जाकर नटराज शिवकुमार को समझा दीजिए कि वह इनाम में मुर्गे को छोड़ कर अन्य कोई चीज माँग ले। मैं अपने प्रिय को अपनी आँखों से दूर करने की इच्छा नहीं रखती हूं। आप मुझ पर दया कीजिए और मेरे जीवनाधार को मुझसे दूर करने का प्रयत्न मत कीजिए।" यह बोलते-बोलते ही गुणावली सिसक-सिसक कर रो पड़ी। गुणावली को रोते देख कर मंत्री सुबुद्धि की आँखों में भी पानी भर आया। लेकिन आज्ञा का गुलाम होनेवाला नोकर मंत्री क्या कर सकता था ? वीरमती की आज्ञा के सामने उसका क्या चल सकता था ? उसे तो वीरमती को आज्ञा के अनुसार ही चलना चाहिए था। वह जानता था कि यदि मैं गुणावली से मुर्गा पाए बिना चला जाऊँ तो राजमाता मुझ पर कोपायमान होगी मुझे कठोर दंड करेगी। मंत्री की स्थिति दोनों ओर से बड़ी विचित्र हो गई थी। इसलिए मंत्री ने अत्यंत प्रेमभाव से रानी गुणावली से कहा, "हे रानी, मेरी आपसे यह विनम्र प्रार्थना हैं कि आप P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
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