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________________ 132 श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र से यहाँ आए हैं। हमने अब तक अनेक राजाओं को अपनी नाटयकला दिखाकर उनका मनोरंजन किया है और अनेक पुरस्कार भी प्राप्त किए हैं। हम आभापुरी की कीर्ति सुन कर यहा आ पहुँचे हैं। आपकी नगरी वैसी ही श्रेष्ठ और सुंदर है, जैसा हमने इसके बारे में सुना था।" नटराज शिवकुमार कि प्रशंसा से खुश होकर रानी वीरमती ने उसे अपनी नगरी म __ अपनी नाटयकला दिखाने की आज्ञा दी। आज्ञा मिलते ही शिवकुमार की नाटकमंडली के पांच सौ कलाकारों ने अपनी नाटयकला के अनेक रंग दिखाना प्रारंभ किया। नाटकमंडली के साथ होनेवाले विशिष्ठ वाद्यों की आवाजों से आकाश गूंज उठा। इस नाटकमंडली के बारे में सुन कर नाटक का खेल देखने के उद्देश्य से रानी गुणावली मुर्गे के पिंजड़े के साथ अटारी में आकर बैठ गयी। नाटकमंडली के सभी कलाकारों ने जब अपनी नाटयकला के विविध नमूने प्रस्तुत किए, तक शिवमाला नाटकमंडप में आकर अपनी अद्वितीय नाटयकला प्रकट करने के लिए सुसज्जित हुई। उसके लिए उसके साथ होनेवाले कलाकारों ने एक मोटा और ऊँचा बाँस भूमि पर स्थापित किया। चारों ओर से उसे रस्सी से मजबूत रूप में बाँध दिया गया। इससे थोड़ा-सा भा। आगेपीछे हुआ नहीं जा सकता था। शिवमाला ने वीरमती को प्रणाम किया और वह सुपारी का फल लेकर ऊँचे बॉस पर राजा चंद्र की जयजयकार करते हुए चढ़ गई। उसने बाँस के अग्र भाग पर सुपारी रखी और अपनी नाभि उस पर स्थापित करके वह अपने पेट के बल पर चारों ओर चक्कर लगाती हुई घूमने लगी। शिवमाला की अद्भुत कला देख कर वहाँ नाटक देखने के लिए आए हुए हजारों दर्शकों ने वाह-वाह की पुकार की और तालियों की गड़गड़ाहट करके अपनी पसंदगी प्रकट की। नीचे तरह-तरह के वाद्य बज रहे थे और सभी दर्शक सावधान होकर शिवमाला का कलाकुशलता को एकटक देख रहे थे। अब शिवमाला ने चारों और घूमते हुए चक्कर काटना बंद किया और अब वह सुपारी पर अपना उल्टा मस्तक रख कर और दोनों पाँव आकाश की और करके खड़ी रही। ऐसा होने पर भी सुपारी अपने स्थान से जरा भी इधर-उधर नहीं हुई / जब शीर्षासन करके शिवमाला P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
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