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________________ भीमसेन चरित्र तभी देवसेन रो पड़ा : "पिताजी! अब तो भूखे पेट एक पग भी चल नहीं सकता। किसी तरह मुझे कुछ भोजन दीजिये। मैं भूखा नहीं रह सकता। अगर आप भोजन नहीं दे सकते तो तलवार से मेरा सर कलम कर दीजिये। ताकि मेरे सभी दुःखों का अन्त आ जायगा।" "वत्स ऐसी अशुभ बात मुँह से न निकाल। शीघ्र ही हम अगले गाँव पहुँच जायेंगे तब तक धीरज रख। इतने समय तक सहन किया तो अब थोड़ी देर और सहन कर लो। दुःख में हमेशा धैर्य रखना चाहिए।" पिता के वचनों पर विश्वास रख दोनों कुंवर पैरों को घसीटते हुए आगे बढ़ने का प्रयल करने लगे। परंतु कुछ देर चलने के पश्चात् पैरों ने पुनः जवाब दे दिया। अब वे एक कदम भी आगे चलने में असमर्थ थे और मार्ग के मध्य में ही थक कर बैठ गये तथा रोते हुए भोजन की माँग करने लगे। भीमसेन ने पुनः उन्हें समझाने का प्रयल किया। प्यार से उनको सहलाया... चूमा तथा देवसेन को अपने कन्धे पर उठा लिया और किसी तरह लड़खड़ाते हुए आगे बढ़ने लगे। एक तो बालकों को गोद में लेकर चलना, रास्ते की थकान, भूख और प्यास तथा सतत रात्रि जागरण, तिस पर प्राप्त परिस्थिति की चिन्ता और सन्तान का दुःख उनका. भूख से रोना-बिलबिलाना इन सब बातों के कारण भीमसेन को चलते चलते चक्कर आने लगे। उनकी आखों सामने अन्धेरा छाने लगा। तथापि बड़ी कठिनाई से अपने मन को दृढ़ कर वह आगे बढ़ने लगा। वे अभी कुछ आगे बढे ही थे कि उन्हें एक सरोवर दिखाई दिया। शीतल पवन बहने लगा। सबके हृदय को तनिक शान्ति का अनुभव हुआ। भीमसेन ने देवसेन को सरोवर तट पर नीचे उतारा और स्वयं सबके लिये जल लेने सरोवर तट की ओर बढ़ा। सबको जल पिलाया और अन्त में स्वयं ने पिया। जल पीते ही सबने एक अपूर्व स्फूर्ति व तृप्ति का अनुभव किया। और तब पुनः यात्रा आरम्भ की। कुछ दूर चलने पर क्षितिप्रतिष्ठित नगर के कंगूरे और भव्य महल दृष्टि गोचर होने लगे। नगर के सिवार में एक बावड़ी थी। बावड़ी विशाल और नगर की शोभा में चार चाँद लगा रही थी। राजहंस और रंग-बिरंगे पक्षियों के कलरव से वातावरण अति आनन्द दायक लग रहा था। वहाँ से कुछ ही दूरी पर एक भव्य जिनालय था। मंदिर के शिखर पर जैन शासन की प्रतीक मनोहर ध्वजा फहरा रही थी। भीमसेन ने सबको बावड़ी के पास बिठा दिया और स्वयं स्नान करने हेतु बावड़ी में उतर पड़ा। स्नान कर वह पूजन-वंदन करने जिन-मंदिर गया। सुशीला व राजकुंवर भी जिनेश्वर देव के दर्शनार्थ मंदिर गये। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036420
Book TitleBhimsen Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size241 MB
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