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________________ हरिषेण का राज्याभिषेक 71 प्रणाम किया, उसी प्रकार पुत्रों ने भी अपने माता-पिता को चरण स्पर्श कर प्रणाम किया। शास्त्रों में माता-पिता को प्रणाम तीर्थ की महत्ता से मण्डित किया है। तत्पश्चात् आवश्यक कार्यों से निवृत्त हो कर सभी ने नवकार मंत्र का स्मरण किया। अल्पावधि पश्चात् भीमसेन अपने स्थान से उठा और उसने जिस स्थान पर पोटली दबाई थी उस स्थान को खोदा। परंतु मिट्टी व पत्थर के सिवाय कुछ भी हाथ नहीं लगा। बटुआ कहीं दृष्टि गोचर नहीं हो रहा था और सब कुछ था। गहने और सुवर्ण मुद्राओं से भरी पोटली पहले ही कोई चुराकर चम्पत हो गया था। सुशीला को जब पता लगा तो सहसा वह मूर्छित हो, अपने स्थान पर ढल गयी। भीमसेन व कुंवरो ने तुरन्त ही उसकी सेवा-सुश्रूषा आरम्भ की। शीतल जल के छीटे मुँह व आँखों पर मारे और उसकी चेतना लौट आयी तो भीमसेन ने उसे आश्वस्त करते हुए कहा : "प्रिये! यह समय रुदन करने का नहीं है। जो होना था, वह हो गया। विवेकी आत्मा भौतिक वस्तुओं के नाश होने पर कभी दुःखी नहीं होती और ना ही शोक करती है। देवी, तुम तो विवेकी आत्मा हो। अतः शोक का त्याग कर स्वस्थ बनो। यदि संकट काल में किसी व्यक्ति ने हमें पहचान लिया तो हम मुसीबत में फंस जावेंगे और बेमौत मारे जाएँगे। अतः सभी चिन्ताओं का परित्याग कर शान्त मन-चित्त से आगे की यात्रा की तैयारी करो। सुशीला मन ही मन समझ गयी कि, “उसके स्वामी जो कुछ कह रहे है, वह सत्य है। जो वस्तु खो गयी हैं, उसके लिये शोक करना व्यर्थ ही है। मुझे तो अभी बहुत कुछ सहन करना है। अगर मैं अभी ही हिम्मत पस्त हो गयी..., निराश हो गयी तो ऐसी दुविधा ग्रस्त परिस्थिति में इन छोटे छोटे राजकुमारों को भला कौन ढाढस बंधाएगा?" / ____ अतः स्वस्थ हो आगे की यात्रा के लिये वह तत्पर हो गयी और केतुसेन की अंगुली पकड़ कर निकल पड़ी। हरिषेण का राज्याभिषेक यह सनातन सत्य है कि, मानव सोचता कुछ और है और होता कुछ और है। कभी वह शुभ मनोरथ की कामना करता है और उसकी सफलता के लिये प्रयलों की पराकाष्टा करता है, परंतु कर्म की विचित्र लीला के आगे उसकी एक नहीं चलती। फलतः उसके सारे मनोरथ असफल होकर रह जाते हैं। ठीक उसी प्रकार कई बार वह किसी के लिये अनिष्ट का चिन्तन करता है और उसे साकार करने के लिये अथक प्रयास करता है। परन्तु कर्म के न्यायालय में उसका कुछ भी जोर नहीं चलता और अन्ततः उसका सारा जोड़ तोड़ बेकार जाता है व उसे मुँह मसोस कर रह जाना पड़ता है। जब कि प्रतिपक्षी उसके चुंगल से अचूक बच जाता है। शायद भीमसेन नौ दो ग्यारह न हो जाय तथा उसे जीवित पकड़कर कारावास में *P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036420
Book TitleBhimsen Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size241 MB
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