________________ सुमित्र का देशान्तर-गमन “आपका कथन यथार्थ है राजन्। परन्तु नरेश! आप राजकुमारियों से तो परिचय करवायिए। हालांकि मेरा मन इस बात की पूरी साक्षी देता है कि आपकी कन्या सुलक्षणा है और हमारे कुंवर के लिये सर्वथा योग्य है। परन्तु ऐसे जीवन भर के स्नेह सम्बन्धों को जोडने से पूर्व लाख बार आगे पीछे का विचार करना चाहिये। अलबत्त धृष्टता के लिये क्षमा चाहता हूँ महाराज!" ___ “ना ना! इसमें भला अविनय और धृष्टता कैसी? यह तो व्यवहार है। कन्या को देखे बिना सम्बन्ध जोड़ना अनुचित ही है। हाँ, तो सुमित्र! तुम्हें वापस लौटने की जल्दी तो नहीं है न?" ___"ना, राजन्! ऐसे कार्य में उतावली करने से भला क्या लाभ होगा। अतः आप आदेश दें तब तक मै आपका आतिथ्य स्वीकार करने के लिये तैयार हूँ।" 'ठीक है कुछ दिन तुम यहीं रुक जाओ। कौशाम्बी नगर व राजमहल में आनन्द, प्रमोद करो। हमारे देश का सृष्टि-सौंदर्य देखो। तब तक मैं इस विषय पर विचार कर लूं।" ___ "आपकी आज्ञा सर आँखो पर।" प्रत्युत्तर में सुमित्र ने विनय पूर्वक कहा। और सुमित्र राजा अतिथि बना। इस अवधि में सुमित्र ने राजकुल और सम्बन्धित लोगों से परिचय प्राप्त किया। रानी कमला से भी भेंट की। सुशीला व सुलोचना को निकट से जानने का प्रयल किया और उनके साथ सम्पर्क भी प्रस्थापित किया। ज्येष्ठ राजकुमारी सुशीला से परिचय प्राप्त कर सुमित्र को आत्म सन्तोष की अनुभूति हुई। उसका लज्जावनत वदन, विनय शीला मृदुलता, बुद्धि सौन्दर्य, कोमल देह यष्टि तथा उच्च संस्कार आदि गुणों से युक्त देख सुमित्र की प्रसन्नता का पारावार न रहा। वह आनन्द विभोर हो उठा और आनन्द वश मन ही मन उसने सुशीला-भीमसेन का विवाह का सपना भी देख लिया। भीमसेन व सुशीला का विवाह पक्का हो जाये तो कहना ही क्या? उसकी बात रह जाय और अनायास काम सफल हो जाएँ। वह मन ही मन इसके लिये प्रभु से प्रार्थना करने लगा। इधर मानसिंह ने भीमसेन की छवि रानी कमला को दिखाई। कमला ने भी उसे जी भर कर देखा। ___"देवी क्या सोच रही हो? सुशीला के लिये यह कुंवर कैसा रहेगा? " मानसिंह ने प्रश्न किया। "इसमें भला मैं क्या कहूँ? आपकी बुद्धि व गुण पर मुझे पूरा भरोसा है। आप जो भी करेंगे वह उत्तम ही करेंगे।“ कमला ने विनीत भाव से कहा। "देवि! ऐसा का कर तो तुम मेरे प्रति अपनी श्रद्धा ही व्यक्त कर रही हो। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust