SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 38
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सुमित्र का देशान्तर-गमन 27 कहना ही क्या? आँख पर पट्टी बाँध कर मछळी की आँख भेद सकते है। परंतु है दोनों ही कोमल हृदय और सुस्वभावी! उसमें भी युवराज भीमदेव सहृदय है। किसी का दुःख उनसे देखा नहीं जाता। वह बहत्तर कलाओं में पारंगत हो, व्यवहार-कुशल भी है।" "इधर आपकी दोनों राजकुमारियाँ भी चौसठ कलाओं में प्रवीण हैं। सौन्दर्य में अप्रतिम और शील चारित्र्य में बेजोड़! बस अन्तर इतना ही है। शेष दोनों के कुलके संस्कार... भावना व विचार... धर्म व जात... सुख व ऐश्वर्य... सत्ता और शौक एक समान है। सुमित्र को बीच में टोकते हुए मानसिंह बोले : "वाह! बहुत सुन्दर! तुम्हारे स्वामी के कुँवर है और मेरे कन्या। अति सुन्दर! क्या ऐसा नहीं हो सकता कि दोनों के कुल इसी बहाने एक हों जाय? _ “राजन् तब तो आपके मुँह में शक्कर! और मुझे भला चाहिए ही क्या? आपकी ज्येष्ठ पुत्री और हमारे ज्येष्ठ कुमार। सोने में सुगन्ध का काम होगा। मुझे पूरा विश्वास है कि, आपकी कन्या के लिये इससे अच्छा वर मिलना सम्भव नहीं है। साथ ही आप जैन धर्म के अनुरागी है वैसे ही मेरे स्वामी भी जैन धर्म के अनन्य अनुयायी है। अब रही बात केवल कुंवर व कन्या की...।" UILDI D राजा मानसिंह को भीमसेन की सुंदर छवि और जन्म __झुंडलीदिखाता हुआ - दूत सुमित्र। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036420
Book TitleBhimsen Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size241 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy