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________________ 278 भीमसेन चरित्र "अतः उच्चात्माओ! उपरोक्त नौ तत्त्वों को अच्छी तरह से पहचान लो। पाप से मुक्त हो जाओ और प्राप्त मानव भव का सदुपयोग करो।" / अन्तमें जब केवली भगवंत ने धर्म-प्रबोधन पूर्ण किया। तब श्रोताओं ने धर्म से प्रेरित हो, यथाशक्ति व्रत-ग्रहण किये... विविध प्रतिज्ञाएँ लीं। तत्पश्चात् भीमसेन केवली ने योग्य दिन पर विहार-यात्रा पुनः प्रारम्भ की और ग्रामानुग्राम विहार करते हुए वे समेतशिखरजी पहुंचे। उन्हें अपना आयुष्य काल समीप दृष्टि गोचर हुआ। तब गिरिराज की उत्तुंग चोटी पर शैलेशी करण ध्यान में आरूढ हो गये। और अल्पावधि में ही चार अघाती कर्म : वेदनीय, नाम, गौत्र एवम् आयुष्य का क्षय किया। केवली भगवंत भीमसेन निर्वाण-पद को प्राप्त हुए। इधर महासती साध्वी श्री सुशीलादेवी ने भी उत्कट आराधना तथा कठोर तपश्चर्या के योग से आत्मा की परमोच्च स्थिति प्राप्त कर ली। वह शुक्ल-ध्यान में प्रवृत्त हो गयी और सकल कर्मों का क्षय कर इसी भव में शिव-पद की अधिकारिनी बनी। ठीक वैसे ही श्री विजयसेन राजर्षि तथा महासती साध्वी श्री सुलोचनाजी ने भी चारित्र-धर्म का उत्कट पालन कर केवलज्ञान प्राप्त किया और अंत में समस्त घाती-अघाती कर्मों का क्षय कर वे मोक्ष-पद के अनुगामी बने। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036420
Book TitleBhimsen Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size241 MB
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