________________ 276 भीमसेन चरित्र भव्यात्माओ! यह संसार दुःख रूपी दावानल से सतत जल रहा है। यहाँ शांति का कहीं नामोनिशान नहीं है और ना ही विराम है। न सुख है, न चैन। आधि से वह घिरा हुआ है और व्याधि से लपेटा हुआ। ठीक वैसे ही जन्म-मृत्यु की असह्य वेदना व व्यथा से भरा हुआ है। यदि तुम इस दुःख रूपी संसार का सर्वनाश करने की तमन्ना रखते हो तो तुम्हें नित्य प्रति चारित्र-धर्म की आराधना करनी चाहिए। संसार में रह कर तुम अनेक प्रकार के अनेक दुःख सहते हो। किन्तु बदले में तुम्हें अक्षय सुख एवम् वास्तविक शांति का अनुभव नहीं होता। किन्तु इससे बिलकुल उलटा तुम अपने भव-भ्रमण की परिधि को विस्तृत करते हो। चारित्र-धर्म की आराधना में रहे अवरोधक तत्त्व को आत्माकी पूरी शक्ति के साथ उल्लसित हो, परास्त करना चाहिए। क्योंकि इसको नष्ट करने से तुम्हारी आत्मा को लगी हुयी कर्म रूपी धुन सरलता से नष्ट हो जाएगी। कर्म राजा की भक्ति एवम् उपासना करने के बजाय हमेशा चारित्र नरेश की भक्ति और सेवा-सुश्रूषा करनी चाहिए। यहाँ पर सब स्वार्थ के सगे हैं। जब तक उनका स्वार्थ सिद्ध न होगा सदैव पीछा करते रहेंगे। किन्तु कर्म-विपाक को सहने का अवसर आएगा तब साथ देने के बजाय पीठ दिखा कर नौ दो ग्यारह हो जाएँगे। तुमने जो कर्म किये हैं, उन्हें तुम्हें स्वयं ही होर सोमपुरा मुनि बनने के बाद हमारे चरित्र नायक केवली भीमसेन महाराजा, अब भीमसेन बने और भव्य देशना दे रहे हैं P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust