________________ 232 भीमसेन चरित्र कठोर तपश्चर्या के माध्यम से आत्मा को विशुद्ध बनाने में रत हो गया। इस तरह अधिकाधिक सावधानी और अप्रमत्त भाव से जीवन का हर पल व्यतीत करने लगा। जैसे-जैसे समय-चक्र गतिमान होता गया वैसे-वैसे उसके ज्ञान में उत्तरोत्तर वृद्धि होती गयी। तपश्चर्या का क्रम बढता गया। नित्य क्रियाओं का नियमित दौर चलता ही रहा। गुरुगम से उसने योग भी पूरे किये। अपने शिष्य की कठोर साधना और त्वरित विकास को परिलक्षित कर गुरुदेव के हर्षोल्लास का पार नहीं था। साथ ही वह उसे अधिकाधिक कार्यक्षम, शक्तिशाली और योग्य बनाने में जुटे हुए थे। ___ इस तरह विविध स्थान और क्षेत्रों में विचरण करते हुए आचार्यश्री का श्री सिद्धाचल तीर्थ पर आगमन हुआ। उस समय एक समय का सामान्य मुनि हरिषेण सर्वदृष्टि से योग्य और स्थवीर बन गया था। ___अतः आचार्य श्री धर्मघोषसूरीश्वरजी महाराज ने उपयुक्त समय पर सर्वगुण सम्पन्न प्रतिभाशाली शिष्य स्थवीर हरिषेण को अपने पद पर प्रतिष्ठित किया... अपना उत्तराधिकारी घोषित किया। और मुनि हरिषेण आचार्य हरिषेणसूरिजी में परिवर्तित हो गये। उन्होंने विनम्र बन, अपने गुरुदेव के श्रीचरणों में भाव-वंदना कर उनकी कल्पनारुप 'आचार्य पद' सुशोभित करने के आशीर्वाद की याचना की। cccccccccc हरिसोगहरा आचार्य हरिषेणसूरि मेघ सम गंभीर शब्दों में पर्म देशना दे रहे हैं। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust