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________________ 226 भीमसेन चरित्र जो ऐसी अपूर्व मन-संपत्ति में निमग्न रहते हैं। वे संसार की भौतिक समृद्धि और अतुल वैभव को प्रायः तृणवत् समझते हैं। धर्म के दो भेद हैं : श्रुत-धर्म और चारित्र-धर्म। आगम-सूत्रों का नियमित रूप से श्रवण-मनन करना चाहिए। उस पर अपार श्रद्धा रखनी चाहिए और उसके अनुसार जीवन यापन करना चाहिए। चारित्र-धर्म के दो भेद हैं : आगारी धर्म और अनगारी धर्म। इस लोक और पर लोक के भय का नाश करनेवाले आगारी-धर्म में श्रावक के बारह व्रतों का समावेश है, जबकि अनगारी-धर्म में पांच महाव्रतों का। दोनों का शुभ भाव से सेवन... आराधन करने से भवांतर में मोक्ष-सुख की प्राप्ति होती है। अतः हे भद्रजनों! यदि जीवन में सुख-संपत्ति चाहिए, सौंदर्य और स्वास्थ्य की आवश्यकता है, परम शांति और विश्राम की जरूरत है तो शुद्ध चित्त से धर्म का सेवन करना चाहिए। जो भव्यात्माएँ श्री जिनेश्वर भगवंत के वचन और वाणी का समादर करते हैं, उसका अपने जीवन में तन-मन से एकाग्र चित्त हो, पालन करते हैं। वे इस लोक व परलोक में अक्षय सुख के स्वामी बनते हैं। इस तरह मानव-भव की यथार्थ व्याख्या और दुर्लभता का वर्णन कर आचार्य भगवंत ने प्रवचन की पूर्णाहूति ‘सर्व मंगल मांगल्यम्' स्तुतिसे की। ___ आचार्यश्री की वाणी प्रभावक थी... मेघ गंभीर थी... मृदु और किसी को भी आकर्षित कर दे ऐसी लुभावनी थी। उनकी चारित्र-संपदा इतनी उत्कट एवम् अखंड अनुपम थी कि, 'उनके एक-एक शब्द से माधुर्य की झडी लगती थी। उनके व्याख्यान का श्रोता-वर्ग पर पर्याप्त प्रभाव पडा... असर हुयी। उनकी वाणी-संधान हर हृदय को झंझोडती हुयी शुभ भावनाओं को जागृत कर देती थी। भीमसेन एवम् उसका समस्त परिवार आचार्य भगवंत की वाणी-सुधा का पान कर हर्षोल्लासित हो रहा था। पल-पल उनके मुखारविंद पर शुभ भावनाओं की झलक दृष्टिगोचर होती थी। गुरुदेव की मंगल-वाणी से उनके अनेकानेक परिताप उपशमित हो गये थे... शांत हो गये थे। किन्तु आचार्यदेव के पुनित प्रवचन का अत्यधिक प्रभाव तो युवराज हरिषेण पर हुआ था। उसका ऋजु आत्मा संसार की असरता का अनुभव करने लगा था। दैहिक नश्वरता ने उसके आत्मा को अस्वस्थ बना दिया था। वह मन ही मन चिंतन कर रहा था : 'मुझे अब इस संसार में क्यों रहना चाहिए? किसके लिए यह सारा पाप का बोझ ढोना चाहिए? और भला ढो कर मुझे क्या मिलेगा? उसमें मेरा क्या साध्य होगा? उफ्, मेरा जन्म तो विफल ही जाएगा न? अरे, फिर भी कोई बात नहीं। अब भी कुछ नहीं बिगडा है। मुबह का भूला शाम P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036420
Book TitleBhimsen Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size241 MB
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