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________________ गौरवमयी गुरूवाणी 213 को खोज रही थी। एक छोर से दूसरे छोर तक मानव महासमुद्र. हिलोरे ले रहा था। स्थान-स्थान पर रंगोली अपनी कालत्मकता प्रदर्शितकर रही थी लोगो अभिलाषा थी कि "हमें स्नेहदान कर राजकुल के योग्य संस्कारों से सुसंस्कृत कीजिए"। अत्यन्त वात्सल्य भाव एवं उत्कृष्ट स्नेह की उष्मा प्राप्त कर हरिषेण का मुरझाया तन-बदन और इन्द्रियाँ अनायास ही सतेज हो, विकसित हो गयी। संतप्त हृदय शांत हो मानसिक श्रम दूर हो गया। क्षोभ की अग्नि शांत हो गयी। और वह सरल भाव से स्वजन के साथ हिल मिल गया जैसे क्षीर मे नीर। मंत्रीगण व सेठ साहूकार भीमसेन की उदारता पर न्यौछावर हो गये। भीमसेन के जयनाद से चारो दिशायें गुंजायमान हो गयी। कुछ समय पश्चात् भीमसेन व हरिषेण अश्वारूढ हो राजगृही की ओर प्रस्थान किया। राजगृही अधिक दूर नहीं थी। कुछ ही समय की छटा बिखेर रही थी। आसुपाल व खरे मोती के बन्दनवार द्वार चौखट की शोभा बढा रहे थे। नगर की सुकुमारियाँ एवं सन्नारियाँ हाथ में अक्षत व पुष्पहार लिये खडी थी। भीमसेन की सवारी जहाँ जहाँ से गुजरी उन पर गवाक्ष, झरोखे व अटारियों से पुष्पवृष्टि हुई। हर चौक और नुक्कड पर अबील - गुलाल उडा कर सत्कार किया गया। देवसेन व केतुसेन का भी यथोचित्त स्वागत हुआ। हजारों कंठो से भीमसेन का जयघोष गुंजारित था। सुहागनों ने ढोलक की थाप पर बधाई गीत गाये। भाट चारणों ने स्तुति गाई। ब्राह्मण पुरोहितों ने आर्शीवाद दिये। ___ दुसरे दिन भीमसेन ने राजसिंहासन पर आरूढ हो, दीन-दुखियों को मुक्त हस्त दान दिया। बन्दीजनों को कारावास से मुक्त किया। सेना नायक व सैनिकों को पारितोषिक प्रदान कर सम्मानित किया गया। अनेकानेक व्यक्तियों के कर तथा राजस्व माफ किया। नगर के समस्त मंदिरों में भव्य महोत्सव का आयोजन किया। कत्लखाने बंद करवाये, दीन व गरीब जनों में भोजन व वस्त्रों का वितरण किया गया। नगर में चोरी, शराब, मांस, जुआ, शिकार, वैश्यागमन, ठीक वैसे ही परस्त्रीगमन पर कठोर पाबंदी लगाई गयी। अनेक स्थलों पर मन्दिर उपाश्रय, धर्मशाला, पान्थशाला व प्याऊं निर्माण करने का प्रबंध किया गया। तत्पश्चात राजसभा विसर्जित कर महाराज भीमसेन अपने राजप्रासाद में गये। पूरे राज्य में आमोद-प्रमोद और सुखशांति का साम्राज्य प्रस्थापित हो गया। गौरवमयी गुरू वाणी समय व्यतीत होते भला कहीं विलम्ब लगता है? महाराज भीमसेन के आगमन के पश्चात् अल्पावधि में ही हरिषेण की उदासीनता भी दूर हो गयी। साथ ही राजगृही का शासन तंत्र भी स्थिर हो गया। राज्य की बागडोर भीमसेन ने स्वयं संभाल ली। हरिषेण भी राज्य कार्य में सक्रिय हो, रूचि लेने लगा। केतुसेन व देवसेन भी अपने चाचा ने कंधे से कंधा भिडाकर राज-धुरा वहन करने में सहायता करने लगे। राजगृही परित्याग के अनन्तर भीमसेन को अनेक प्रकार के दुःख एवं कष्टों का सामना करना पड़ा था। पेट P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036420
Book TitleBhimsen Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size241 MB
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