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________________ 211 राम-लखन की जोडी भूख-प्यास से तडफना पड़ा। मातृतुल्य भाभी को टाट के टुकडों पर सोना पड़ा। सब कुछ होते हुए गरीबी में संहार करना पडा। यह सब मेरे ही कारण हुआ है? सब कुछ मैंने ही किया। और! मैंने वास्तव में अक्षम्य अपराध किया है। अतः मुझे इसकी कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिये। मझे मेरे पाप भोगने ही होंगे। "हरिषेण वेदना व्यथित हो, आर्तनाद करता रहा। " अरे पगले आर्तनाद करने से क्या लाभ? भूल जाओं, सब कुछ। भूल जाओ। अतीत को याद करके अकारण शोक न करो, बल्कि तुम्हें तो अब प्रसन्न होना चाहये। भीमसेन ने हरिषेण को समझाते हुए कहा! ना...ना यह मैं कैसे भूलू भैया। अपनी करनी को कैसे भूल जाऊँ। इसका स्मरण होते ही मेरा हृदय क्रंदन करने लगता है। उफ् मुझ हतभागी को यह सब क्या सूझा? मैं भी कैसा महामूर्ख था, जो पत्नी की बातों में आ गया। नही! नही! यह सब मैं कदापि भूल नहीं सकता और संभव भी नहीं है। यदि मैं तनिक सावधानी बरतता तो ऐसा प्रसंग नहीं आता?" किन्तु पगले नियति को कौन रोक सकता है। तुम तो महज निमित मात्र हो। यह तो हमारे अशुभ कर्मों का ही फल था। वर्ना ऐसी घटना क्यों घटित होती? और आज तुम्हें तुम्हारे दुष्कृत्यों के लिये पश्चाताप हो रहा है क्या यही पर्याप्त नहीं है? पाप तो कई लोग करते हैं। परन्तु पाप का प्रायश्चित करने वाले बहुत कम लोग होते है। जिस दिन से तुम्हें पाप बोध हुआ है। उसी दिन से तुम्हारे पापों का ह्रास होने लगा। प्रतिदिन प्रश्चाताप की अग्नि में प्रज्जवलित हो कर तथा इसके लिए हृदय से क्षमा याचना कर तुमने अपने पापों को धो दिया है। तुम्हारी विगत प्रवृत्तियों से मंत्रियों ने मुझे पहले ही अवगत कर लिया है। तुम अब स्वस्थ बन, धैर्य धारण करो। किसी भी प्रकार के पाप बोध से ग्रसित मत रहो। तुम सचमुच निरपराधी हो! निर्दोष हो। जो बीत गया उसे भूल जाओ, और नव प्रभात का नयी उमंग से स्वागत करे।। मेरे साथ कंधे से कंधा मिलाकर राज कार्य में हाथ बटाओं राज्य की समृद्धि को... करने में सक्रिय साथ दो। जैन शासन की प्रभावना करने में योगदान दो। अपने भतीजों को राजनीति कार्य में प्रशिक्षित कर राजकुल का गौरव वृध्धिगत करने में सहयोग दो। उन्हें प्रेम से गले लगाओ.... स्नेह दान कर उन्हें अपना बनाओ। अपनी भाभी के चरण स्पर्श कर उनके आशिर्वाद ग्रहण करो। न जाने कब से वे सब तुम्हें मिलने के लिए आतुर हो रहे है। “भाभी मेरी पवित्र भाभी अपने नालायक देवर को क्षमा नहीं करोंगी सुशीला के चरणों में लोटते हुए हरिषेण ने गिडगिडा कर कहा। "उठों हरिषेण! उठो, तुम्हारा तन-मन पश्चाताप से दग्ध है। यही पर्याप्त है। अपने कीमती अश्रुओं को पोछ डालो। और अतीत की कडुवी याद को हमेशा के लिये भूल जाओ। व्यक्ति अपने कर्मों का ही फल भोगता है। यह प्रायः स्व कर्माधीन होता है। किंतु उससे क्या? हमें अपने कर्मों के फल भुगतने ही थे। जो कुछ हुआ अच्छा ही हुआ कई नये P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036420
Book TitleBhimsen Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size241 MB
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