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________________ 200 भीमसेन चरित्र मैं अक्षत यौवना ही हूँ। जीवन व यौवन का आनन्द क्या मैं कभी प्राप्त नहीं कर पाऊँगी? नहीं... नहीं.... मुझसे यह वेदना अब सहन नहीं होगी। मैं तो पुनर्विवाह करूँगी अपने यौवन के उद्यान को यो उजडने नहीं दूंगी हे कृपालु नरेश! यही मेरा दुःख है। इस विपदा की घडी में आपने मुझे साथ देने का आश्वासन दिया है। अतः आप मेरा हाथ थामे। मुझे अपनी भार्या बनाये। मेरी आत्मा व शरीर के स्वामी बन कर मेरा दुःख हरण कीजिए। आप सदृश पति प्राप्त कर सदैव के लिये में अपना दर्द भूल जाऊँगी। हे करूणानिधान भीमसेन! मुझ दासी पर दया कीजीए। मुझे अपनी अर्धागिनी बना लीजिए। आपकी दासी बनकर अपना जीवन व्यतीत कर दूँगी...।" युवती ने अपनी आपबीति सुनाते हुये करूण स्वर में कहा। "हे दैवि! तुम्हे ऐसा बोलना शोभा नहीं देता। मैं मानता हूँ कि तुम्हारा दुःख अवश्य ही असह्य है। परन्तु हे भगिनी! कर्म के आगे किसका जोर चला है, जो तुम्हारा या मेरा चलेगा। पहले तुम स्वस्थ बनकर अपने आपको संभालो। अपने मन से ऐसे पापी विचार निकाल फेंको। क्योंकि सतीत्व ही नारी का धर्म है। अतः भूल कर भी धर्म-भ्रष्ट मत हो। स्मरण रहे पूर्वभव में तुमने कोई अशुभ कर्म किये होंगे। उसीके परिणाम स्वरूप आज तुमने अपना पति-सुख खो दिया। क्या यह शक्षा ग्रहण करने के लिये पर्याप्त नहीं है? सो नये कर्म उपार्जन कर अपने आनेवाले भवों को बिगाडने पर तूली हुई हो। और फिर मैं तो एक पली व्रतधारी हूँ। मेरी पली सुशीला व सदगुणवती है। साथ वह दो बालकों की मां भी है। और फिर मैंने तुम्हें W ATE स्वदारा संतोष व्रत की कसौटी पर खरा उतरने के लिए क्रोड़-क्रोड़ धन्यवाद! ईंद्र द्वारा भीमसेन को अभिनन्दन! P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036420
Book TitleBhimsen Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size241 MB
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