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________________ 153 आचार्य श्री का आत्मस्पर्श देव दुंदुभी का कर्ण प्रिय स्वर सुनकर क्षितिप्रतिष्ठित नगर के प्रजाजनों के कुतूहल का पारावार न रहा। देवी-देवताओं द्वारा किये गये जयनाद की ध्वनि राज दरबार तक पहुँच गयी। नगर नरेश विजयसेन भी राज काज छोड़कर खड़ा हो गया। अकल्पित घटना का वृतांत ज्ञात करने के लिए उसने अपने सैनिक चारों दिशाओं में प्रेषित कर दिये। धर्म के प्रति उसके मन में अनन्य श्रद्धा थी। साथ ही वह उसका समर्थ ज्ञाता था। उसने अनुभव किया कि यह कोई मानव निर्मित वाद्य यन्त्रो की आवाज नहीं है, बल्कि देवताई दुंदुभी का नाद है अर्थात् अवश्य ही किसी पुण्य आत्मा को महा ज्ञान की प्राप्ति हुई है। किन्तु ऐसी पुण्यआत्मा भला कौन होगी? किसने अपने मानव जन्म को सफल . बनाया होगा? इस तरह के विविध विचारों को अपने मन में संजोये हुए विजयसेन सपरिवार देव दुंदुभी की दिशा में वेग से बढ़ गया। कुछ दूरी पर श्रमण भगवंत को दृष्टिगोचर कर वह अपने अश्व से नीचे उतरा। राज मुकुट को सेवक के हाथ में थमा दिया। शस्त्रास्त्र एक ओर रख दिये और माग दर्शन की अभिलाषा लिए नंगे पाँव चल कर धर्मघोषसूरि के निकट आया राजपरिवार के साथ नगरवासी भी आये। मेदिनी जमा हो गई। वट वृक्ष की घनी छाया के तले पूज्य आचार्य भगवंत ने धर्म देशना आरम्भ की। भव्य आत्माएँ! अखिल ब्रह्मांड में यदि अति दुर्लभ वस्तु कोई हो तो वह है मानव भव। awar हरि सोमहरा वट वृक्ष की छाया तले - मोक्षमार्ग को बताते हुए आचार्य भगवंत और उनकी / देशना सुनते हुएँ - भीमसेन सहित अनेक आसत्रभवी भाग्यात्माएँ। P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036420
Book TitleBhimsen Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size241 MB
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