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________________ संसार एवं स्वप्न जब कि प्रत्येक वीथिका में एक व्यायाम शाला अवश्य थी। किन्तु राजगृही का वास्तविक आकर्षण केन्द्र तो उसके विचित्र मन्दिर और हाट-हवेलियाँ थीं। वैसे तो वहाँ सभी वर्ण, मत और धर्म के लोग बसते थे, किन्तु नगर में जैन धर्मावलम्बियों का बाहुल्य था और यह सनातन सत्य है कि जहाँ जैनों की आबादी हो, वहाँ जिनालय, उपाश्रय, ज्ञानमंदिर, पौषध शाला और पाठशाला न हो यह भला कैसे सम्भव हो सकता है? / राजगृही के प्रशस्त राजमार्ग पर से गुजरने वाले हर किसी नागरिक अथवा पथिक को उन्नत और गगन चुम्बी जिन मंदिर के शिखर के दर्शन अवश्य होते। नगर के सभी जिनालय लगभग उच्च शिखर के थे। जैन-शासन की धर्म-पताका आकाश की ऊँचाईयों को पार करती बड़े गर्व से लहराती रहती और सुवर्णमय कलात्मक कलश सूर्य-प्रकाश में सदैव दमकते रहते थे। एक मंदिर के दर्शन करो और दूसरे को भूल जाओ। प्रत्येक मंदिर के एक से एक बढ़कर चित्रात्मक कला कौशल, चित्ताकर्षक अद्भुत रचना। दर्शक का मन उसकी भव्यता और कलात्मकता निहार भवाविभोर हो उठता था। ठीक वैसे ही वहाँ के उपाश्रय, पौषधशाला और ज्ञानमंदिर भी उतने ही भव्य और अद्भुत थे। बाहर से वे जितने भव्य और आकर्षक थे, भीतर उतने ही दिव्य और रमणीय थे। वहाँ के पवित्र वातावरण में विश्व के समस्त ताप-संताप और दुःख दर्द पलक झपकते न NTPALI ज्ञानी गुरु भगवंतों का भक्त उदारमना राजा गुणसेन। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036420
Book TitleBhimsen Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size241 MB
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