________________ 120 भीमसेन चरित्र तभी देवसेन गुहार उठा : "माँ! माँ! मुझे कुछ उढाओ ना। मुझे बहुत ठंड लग रही है।" सुशीला ने शीघ्र ही उठकर अपने बिछाने का जीर्ण-शीर्ण पटासन का टुकड़ा उसको उढ़ा दिया। तत्पश्चात् खुली खिडकी (रोशन दान) को बंद कर दिया। और स्वयं जमीन पर सो गयी। परंतु उसे भला नींद कैसे आती? एक तो बर्फिली सर्द हवा और तिस पर दिन भर के काम की थकान। वैसे पिछले दो दिन से पेट में अन्न का दाना भी नहीं गया था। ये सारी पीड़ायें उसे निद्रित नहीं होने दे रही थी। बालकों का भूखे-प्यासे सोना, पति का परदेस गमन और बालकों को कल भला भोजन कहाँ से लाकर देगी? यही चिन्ताएँ उसे सतत जला रही थी। अतः व्यथा व्यथित हो, प्रभु से गुहार करने लगी। सुशीला को खिड़की के पास आते देख भीमसेन वहाँ से खिसक गया। क्षणार्ध में ही खिड़की बन्द हो गयी। अब भीतर का कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था। तथापि भीमसेन ने खिडकी की दरार से अन्दर झांका। सुशीला की आँखों से अश्रुधारा प्रवाहित हो रही है और वह विधाता से शिकायत भरे लहजे में पूछ रही थी। 'अरे! भगवन्! हम पर तुम इतने क्रूर क्यों हो गये? क्या तुम्हारे हृदय में दया का लेशमात्र अंश नहीं रहा? क्यों रोज रोज हमें रूलाता है? यदि हमें दुःख देने की तुम्हारी इतनी ही इच्छा हो तो मुझे दो। किन्तु इन फूल से मासूम बालकों ने भला तुम्हारा क्या बिगाड़ा है? अगर इन्होंने तुम्हारे प्रति कुछ अपराध किया है, तो उसका दण्ड मुझे दे दो। परंतु इनको यों भूख से तड़फाओ मत। किस अपराध की सजा इन्हें सर्द ठंडी रात में कँपकँपा कर दे रहे हो? किस लिये तुमने उनकी नींद, सुख चैन और आमोद-प्रमोद के क्षणों को छीन लिया है? हे विधाता! ऐसी कोई जननी है जो अपनी सन्तान को यों गलित गात्र और दुःख दर्द तड़फता देख सकती है? मुझसे इन कोमलांग बालकों का दुःख देखा नहीं जाता। कहाँ ये राजकुल की सन्तान? एक समय था, ये रत्न जड़त खिलौनों से खेला करते थे। उत्तम वस्त्र धारण करते थे। एक वस्तु के स्थान पर उनके सामने ढेरों वस्तुओं का अम्बार लग जाता था। माँगने की तो कभी आवश्यकता ही नहीं पड़ती थी। सदैव आनन्द व मस्ती में मस्त रहते थे। और रात्रि होने पर निश्चिंत होकर निद्रा की गोद में केलि-क्रिड़ा करते थे। और कहाँ आज मेरे लाडले की यह दुर्दशा? कहावत है कि इन्सान भूखा उठता है, परंतु भूखा सोता नहीं। तब मेरी संतान के प्रति इतना अन्याय क्यों?' "हे विधाता! मैं तुमसे ही प्रश्न करती हूँ कि क्या तुम्हारा न्याय यही है? बालक दो-दो दिन से भूखे-प्यासे सोते हैं और भूखे ही उठते हैं और कभी कभार भोजन मिल भी गया तो अपर्याप्त, रूखा-सूखा और जैसा-तैसा। अरे प्रभु! तुम मेरे बच्चों के पीछे क्यों पड़े हो? इन मासूमों को सुख पूर्वक जीने तो दो। भले ही तुम उन्हें P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust