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________________ 118 भीमसेन चरित्र साथ ही उस पर दो चार आडी तिरछी झुर्रिया स्पष्ट दृष्टि गोचर हो रही थी। गाल बिलकुल पिचक गये थे। जबड़े की हड्डी ऊपर उभर आयी थी। बाल सूखे व खुले पड़े थे। भूमि पर पड़ा हुआ हाथ उसकी कंगाली की स्पष्ट सूचना दे रहा था। हाथ के कंगन रह-रह कर निकलने के लिये बेताब हो रहे थे। उसकी देह कृष हो गयी थी। वक्षःस्थल एकदम चिपक गया था। पहने हुए वस्त्र भी पर्याप्त नहीं थे। कई स्थानों से वे जीर्ण-शीर्ण हो, तार-तार हो गये थे। एक समय का उसका अप्रतिम सौंदर्य रह रह कर भव्य भूतकाल की चुगली खा रहा था। भीमसेनने अनुभव किया "जैसे यह सुशीला नहीं, बल्कि सुशीला के स्थान पर उसका जीवित अस्थि पंजर सो रहा हो। उसने गहरी निश्वास छोड़ी"| ___ जब कि देवसेन व केतुसेन का देह-वर्णन करना तो साक्षात् करूणा को मूर्तिमंत करना है। उनके जबड़े बैठ गये थे। शरीर की एक एक पसली गिनी जा सकती थी। वे खुले शरीर हाथ-पाँव समेट कर सो रहे थे। तदुपरान्त बर्फिली हवा वातावरण की नीरवता भंग कर रही थी। सर्द हवा के झोंको में भला इतनी ममता कहाँ कि, वह अबोध बालकों को कम्पित न करें। मारे ठंड के दोनों बालक बुरी तरह से काँप रहे थे। तभी केतुसेन हड़बड़ाकर उठ बैठा और 'माँ! माँ' कहकर रोने लगा। केतुसेन के रोने की आवाज सुन, सुशीला भी जाग पड़ी। देवसेन की आँखे भी खुल गयीं। सुशीला ने केतुसेन को गोद में लेकर दुलारते हुए पूछा : "क्या हुआ, वत्स! रो क्यों रहे हो?" हरि सोमदरा / सुशीला को देखकर, भीमसेन चौंक उठा, रो पड़ा उसके कानों बच्चों की आवाज सुनाई दी - माँ, 'छ माह में वापिस लौटेंगे पिताजी, ऐसा तेरा वादा कहां गया? तूं रोजाना झूठ बोलती हैं, Jun Gun Aaradhak Trust P.P. Ac. Gunratnasuri M.S.
SR No.036420
Book TitleBhimsen Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size241 MB
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