________________ पञ्च सूत्री // 37 // - बाधा गतकर्मपांसुकाः। निष्पीडाः केवलज्ञान-दर्शनाः सिद्धिपूर्गताः // 9 // अनन्यसुखसंयुक्ताः, कृतकृत्याश्च | सर्वथा। शाश्वताः सन्तु सिद्धा मे, शरण्याः शरणं सदा // 10 // शान्तगम्भीरचेतस्का, विरताः पापतः सदा। आचारपश्चकोयुक्ता, उपकारे रताः सदा // 11 // पनादिवत्सुवृत्तान्ता, ध्यानाध्ययनसंगताः। विशुद्ध्यमानसद्भावाः, साधवः शरणं मम // 12 // सुरासुरनरैः पूज्यो, मोहान्धतिमिरेशुमान् / रागद्वेषविषे मन्त्रः, सर्वकल्याणसाधनम् // 13 // विभावसुः कर्मवने, सिद्धभावस्य साधकः। यः केवलिभिः प्रज्ञप्तो, धर्मोऽस्तु शरणं मम // 14 // स्थितः शरण एतेषां, जगत्रितयशासिनाम्। अनन्यशरणार्हाणां, निन्दामि निजदुष्कृतम् // 15 // मान्येषु पूजनीयेषु, धर्मस्थानेषु केष्वपि / मातृपितृसखिबन्धु - धूपकार्येषु वा पुनः // 16 // मार्गस्थेषु तथाऽन्येषु, पुस्तकादिषु यत् पुनः / आचीर्ण वितथं किञ्चित्, पापं पापानुबन्धि च // 17 // सूक्ष्म वा बादरं चेतो, वाकायैः कारितं कृतं। शंसितं रोगद्विइमोह-रत्रामुत्र भवेऽपि वा ॥१८॥गी दुष्टं प्रोज्झनीयं, ज्ञातमेतन्मया समे। कल्याणमित्रभगवदुक्तेः श्रद्धाय रोचितम् // 19 // सिद्धार्हत्साक्षिक गहें प्रोज्झनीयं च दुष्कृतम् / मिथ्या मे दुष्कृतं भूया-दत्र त्रिधा पुनः पुनः // 20 // भूयाद् गर्दा सदैषा मे, सम्यक् तदकृतौ पणः / वाञ्छाम्यनुशास्तिमह-महतां भगताजुषाम् // 21 // कल्याणमित्रसाधूनामेभिर्मेलः सदाऽस्तु मे। बहुमानोऽत्र मे भूयान् मोक्षबीजमितोऽस्तु च // 22 // प्राप्तेष्वेतेषु सेवाह, आशाहः परिचारकः। पारगोऽनतिचारः स्या, शक्त्या सुकृतमाद्रिये // 23 // सर्वेषामर्हतां मन्ये, आईन्त्यं सिद्धभावतां / सिद्धानां सूरीणां शंसाम्याचाराणां प्रवर्तनम् // 24 // वाचकानां सूत्रदानं, साधूनां मोक्षचेष्टितं / मोक्षसाधनयोग च, श्रावकाणां दिवौकसाम् // 2 // जीवानां मोक्तुकामानां, कल्याणाशयिनां सदा। मार्गसाधनयोगोऽस्तु, ममैषाऽस्त्वनुमोदना // 26 // सम्यगविधियुता शुद्धा-शया प्रवृत्तिसंयुता। गुणयुक्ताऽनतीचारा, सामर्थ्यादईदादिकात् // 27 // अचिन्त्यशक्तियुक्तास्ते, भगवन्तो गतद्विषः। सर्वज्ञाः पूर्णकल्याणाः, सत्त्वानां सिद्धिहेतवः // 28 // मूढः पापोऽनादिमोह-वासितोऽझो हिताहिते / स्यां शोऽहितानिवृत्तः सन् , प्रवृत्तो हितवमनि // 29 // उचितप्रतिपत्त्या स्या-माराधकः समात्मसु / इच्छामि सुकृतं सम्यक, पठतः शृण्वतस्त्विदम् // 30 // भावयतः श्लथा बग्धा, अशुभा निर्गतास्ततेः। विष मन्त्राद्युपहत-मिव सामर्थ्यवञ्चिताः // 31 // अल्पफलाः स्वपनेया, अपुनर्भाविनः पुनः। आक्षिप्यन्ते सत्कृतानि, पोष्यन्ते पूर्तिमियति COOCOOOOOOOOOOO // 37 // HIP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust