________________ // 72 // कुरुतेऽसुमान् // 22 // यथा शुद्ध जलं जातं, परेषां शुद्धये भवेत् / तथा सम्यक्त्वमाप्यान्या-नगिनोआगमोमार्गमानयेत् / // 23 // यद्यप्यभव्यतोऽनन्ता, बुद्ध्वा सिद्धिं गता नराः। तथापि ते तदुद्देशा न, भव्या नित्य क्षायिकभ. द्वारककृति- तदर्थिकाः // 24 // वस्त्रं यथोपभोगार्ह, चिरं कालं तथाङ्गिनां। सम्यक्त्वं येन तत्साधनन्तमपि प्रजायते वसङ्ख्यासन्दोहे // 25 // पृथक् पृथग् मया भावः, पल्यादीनामुदीरितः / ज्ञातानामात्ममोदायोशन्तु सम्यग् बुधाः परम् // 26 // इतिसम्यक्त्वज्ञातानि // विचारः क्षायिकभवसङ्ख्याविचारः (28). . नत्वा मोहमहाराति-मानमर्दनमालिनं / जिनं निर्जरसन्तान-ततकीर्ति जगत्मभुम् // 1 // सम्यक्त्वे A क्षायिके लब्धे, शेषां भवभ्रमावलीं। शास्त्रदृष्टया विनिर्णीय, वच्मि स्वान्यावबुद्धये // 2 // क्षीणे निश्शेषतो ISI दृष्टि-मोहसप्तक आप्यते / दर्शनं क्षायिकं यत्तन्निर्मलं व्यभ्रचन्द्रवत् // 3 // न सम्यग्दर्शनाणूनामुदयादर्शनाहतिः। K/ चेत्तदैषां क्षये किं न सम्यग्दर्शननास्तिता ? // 4 // भेदं दर्शनदृष्टयोर्ये, मन्यन्ते साणुदर्शनं / साच्छादं विगमे दय्या, दृष्टिरिष्टा बुधैस्तकैः // 5 // निर्मलेऽभ्र यथा नार्क-तापो भुवि निहन्यते / अभ्रापगमभावे तु, स प्राचुल र्येण भासते // 6 // तथा दर्शनाणूना-मुदयात् शङ्कित्तादयः / तेषां क्षये विलीयेत, शङ्काकासादि दूषणम् // 7 // क्षायिके दर्शने लब्धे, नायुर्वद्धं तदा नरः। समाप्य क्षपकश्रेणिं, लभते पदमव्ययम् // 8 // बद्धायुविरमेतात्र, A स्वर्गे श्वभ्रेऽमितायुषि / नरे तिरश्चि यात्येष, नापरत्रेति शास्त्रगीः // 9 // अनन्तरे भवे स्वर्गी, नारको वा शिवं व्रजेत् / अमितायुनरस्तिर्यग् , देवीभूय पुमान् पुनः // 10 // जातो महोदयं याया-देवं क्षायिकदर्शने। लब्धे भवानां त्रितयं, चतुष्कं वावशिष्यते // 11 // कथं कृष्णनरेन्द्रस्य क्षायिके दर्शने स्थितं / भवपञ्चक // 72 // ऊपर MP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trus