________________ आगमो- द्धारक कृति सन्दोहे // 22 // छा. के. खा. जेषा अचितस्कन्धगोऽन्त्यो य:, संयोगः स न पुद्गलः // 5 // यथाप्रवृत्तकरणं, योगा मिथ्यात्वमक्षगं / ज्ञानमोघेन || सर्वेऽमी, हेतवोऽन्त्या न पौद्गलाः // 6 // अत एवैवशब्दोजासाम्प्रतस्त्विति सूरिभिः / वृत्तौ स्पष्टतयाऽऽ- परमाणुख्यात-मत्रेति च मतं पदम् // 7 // अत्रशब्देन तैरुक्ता पुद्गलानामधिश्रिति: / स्युरन्यत्रान्यथाऽन्त्यास्तेऽधिकृता | पञ्चविं. नात्र पौद्गले // 8 // तच्छब्दोऽपेक्षते शब्दं, यदितीत्थं प्रमीयते / यदन्त्यं कारणं स्कन्धे, तत्परमाणुरुच्यते शतिका // 9 // वादोज परिणामस्य, तेन द्वथणुकसंहरात् / उद्भवः परमागोः स्यान्, न कार्य कारणात्ययात् // 10 // महास्कन्धेऽपि सोऽस्त्येव, परिणामोऽपरस्तदा / भेदे द्वथणुक सङ्घादेरन्त्योऽणुः कारणं पृथक् // 11 // सामान्येनाधिकारोवा-जीवानां प्रथमः कृतः / पृथक्कर्तुमधीकार-मत्रेत्यावश्यकं पदम् // 12 // जगत्यसौ न कालोऽस्ति. यस्मिन सर्वेऽणवः प्रथक / अन्त्यावस्थां गताः स्यर्यदेवलक्षणविग्रहाः // 13 // आलोच्येत्याहराचार्या यत् सूक्ष्म पौद्गलं दलं / स सूक्ष्मः परमाणुः स्यात्, सम्बद्धोऽपि स्वरूपतः // 14 // सूक्ष्मो नापेक्षिको I ग्राह्य स्तस्य बादरभावतः / अन्त्यः सूक्ष्मः पुद्गलस्तु, कश्चिन्नाणोः पो भुवि // 15 / / यथाऽन्त्यं कारणं बद्धे, न गम्यं न पृथक् समे / अणवो न विभक्ताः स्युर्जातु सूक्ष्मत्वमाययुः // 16 // आशङ्कयेति तृतीयं, लक्षणं नित्य ईरितं / परिणामेषु सर्वेषु, पृथक्त्वे च सदा भवेत् // 17 // जैनो वादः परीणामेऽतोऽणुः स्कन्धेष्वपीष्यते / कथञ्चित्परिणामच, कार्य हेतुं च समन्वयेत् // 18 // नाशान्न कारणानां स्यान्न चानाशात्तु सर्वथा / वादेज परिणामस्य, नाशानाशावुभौ मतौ // 19 // यथा व्युतः पटस्तन्तु-समवायेन कारुभिः / करोति पट- 1 कार्याणि, तन्तुकार्य न रुध्यते // 20 // अन्त्यकारणता सौम्य, नित्यत्वं च श्रितं ह्यणून् / श्रद्धानुसारिणः श्रोतॄन् प्रतीदं लक्षणत्रयम् // 21 // तर्काणुसारिणः श्रित्वाऽऽचार्यास्तुर्य जगुः परं / लक्षगं कार्यलिङ्गेति, R परमाणोर्विनिश्चितम् // 22 // आन्वीक्षिकी श्रितो विज्ञोऽनुमायादृष्टमूहते / भूमिगृहाद् द्विजं क्रष्टुं, नेशा विद्या / // 22 // र्थिनः परे // 23 // नाणूनां साधनं तळं, कार्यलिङ्गात् परं याः / हेतुहेतुर्महद्रव्ये, तर्के प्रोच्याणुरुच्यते // 24 // | PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust