________________ || अध्यात्मब्रुवाः सुश्लाघां, न लभन्ते कदाचन // 38 // न क्षमा व्यवहारे ये, कथं ते निश्चये क्षमाः / / आगमो स्युनौतुराखुदष्टाक्ष आखुहा गन्धमात्रतः // 39 // रजःसङ्गो यथाऽक्लिन्न गात्रे नो नैव चाङ्करः / दग्धे बीजे, II नयद्धारक- मलाविद्धे जठरे न शमक्रिया // 40 // नाधौते वसने रङ्गो, भित्तौ चित्रं न चाशुचौ / चित्ते न निश्चयोल्लाघे विचारः कृति- व्यवहारापहा वृषः // 41 // अवाप्तकेवलाश्चात, एवारम्भपरिग्रहौ / तत्यजुर्यन्न रमणं, क्षीणमोहा दधुभवे // 42 // सन्दोहे निश्चयेन विहीनानां, व्यवहारव्रतायपि / न शिवाय ततोऽभव्या, व्यवहारपरा अपि // 43 // मिथ्यादृशो भवे भ्रान्ता, मोक्षश्रद्धानवर्जिताः / नाबीजे पुष्करावर्ते, वृष्टे प्यडुरसम्भवः // 44 // गोत्रे चिलातिपुत्राय, // 6 // पटवे नरकायुषः / चौर्यात् कन्यावधात् को न, निश्चयाय स्पृहां वहेत् // 45 // घातिनो भ्रूणगोब्राह्म-कलत्राणां खलात्मनः / दृढप्रहारिणस्त्रातुनिश्चयस्य यशोऽनघम् // 46 // निश्चयाद् भारतीमृद्धिं, लक्षाधिका वहन् वधूः / धारयन् भूषिताङ्गो यात्, केवलं भरतो नृपः // 47 // अनवाप्तं यया पूर्व, न कदापि सुदृग् व्रतम् / मरुदेवीभशीर्षस्था, निश्चयात् केवलं गता // 48 // व्यवहारः श्रियै नैवानिश्चयस्तेन भूपते: / उदायिनो निहन्तुन, श्रेयस्त्री मुनिता मता // 49 // अङ्गारान्मर्दयन् सूरिवी रजीवा अमी इति / ब्रुवन् गच्छाद् बहिश्चक्र, व्यवहारपरायणः // 50 // बोधाय निश्चयस्य प्राग, अणुसर्वव्रतादृतौ / प्राज्ञैरनुमता पृच्छा, न तत्को निश्चयं श्रयेत् // 51 // कर्मबीजं तृषापाथः-सिक्तं जन्माङ्करं सृजेत् / परिणामाच्च तजन्म, तन्मुक्त्यै निश्चयं भज // 52 // सद्दर्शने भवेद्धतर्यः सेषोऽन्यगुद्भवे / ज्ञाने ज्ञाने च चरणे, बकुशत्वे च मन्यते // 53 // आद्याङ्गतः स्मृतं सूत्र. गणधारिभिरभ्रमैः। आश्रवा ये परिश्रवाः, परिश्रवास्त आश्रवाः // 54 // ज्ञानं नादर्शने मौन-मात्मबोधमृते स्मृतम् / तान्यन्तरेण मोक्षो न, निश्चयाद्दर्शनं भज // 55 // आसादयेयुरनध-दर्शनाः शाश्वतं पदं / नादर्शना मुनिजना, निश्वयं तद्भजस्व भोः ! // 56 // मतं दर्शनज्ञानाभ्यां, तीर्थ कैश्चिन्मनीषिभिः / अतस्तदृष्टयश्चाप्ता, नतास्तात्त्वि- // 6 // कवित्तमैः // 57 // अप्रवृत्तान योगाः स्युरनगारपदप्रदाः। सर्वेऽन्यथा शिवे स्थास्यन्, सुप्ता मूञ्छितचेतसः॥५८ / P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust