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________________ (156) एक सरूप असे रतनत्रै करिती पंचम गतिमा सातौं भैकरिश मखदाय ।मंगल. नव नो-कपाय दस पूजौं ध्याऔंगा बाहज आतम भाव वहाव / अंतर है परमातम ध्याव // मं० // 6 // साहव सेवक भेद मिटाय / द्यानत एकमेक हो जाय // मंगल०॥ मंगल आरती। मंगल आरती कीजै भोर, विघनहरन सुख करन किस अर्हत सिद्ध सूरि उबझाय,साधनाम जपियै सुखदाय नेमिनाथ स्वामी गिरनार, वासुपूज्य चंपापुर धार। पावापुर महावीर मुनीस, गिरिकैलास नमौं आदी सिखर समेद जिनेसुर वीस, वंदौं सिद्धभूमि निस प्रतिमा स्वर्ग मर्त्य पाताल,पूजौं कृत्य अकृत्य त्रिकाल पंचकल्यानक काल नमाम, परमादारक तन गुनधार केवल ग्यानआतमाराम,यह पटबिधमंगलअभिराम मंगल तीर्थकर चौवीस, मंगल सीमंधर जिन बीस मंगल श्रीजिनवचन रसाल,मंगल रत्नत्रय गुनमाला मंगल दसलच्छन जिनधर्म, मंगल सोलैकारण मंगल वारैभावन सार,मंगल चार सघ परकार|मंगलकाला मंगल पूजा श्रीजिनराज, मंगल सास्त्र पढ़ें हितकाज। मंगल सतसंगति समुदाय,मंगल सामायिक मनलायमिंगळ मंगल दान सील तप भाव, मंगल मुक्तवधूको चाव / द्यानत मंगलआठौं जाम,मंगल महाभक्तिजिनस्वाम।मंगल इति आरतीदशक। आदीस।मंगल. मिनिसदीस। त्यत्रिकाला।मंगल. दारक तन गुनधाम। ( 157) दशवोल पचीसी। मंगलाचरण, छप्पय। रूप अभेद, दोय विध विधि-निषेधमै / करि तीन, चार विध दर्वादिकमैं // गति सुचि ठौर, आप पटकारक राजै / करि भिन्न, आठ गुनसहित विराजै // कपाय दस बंध हरि, तास रूप हिरदै धरौं। "औं गाऔं सदा, जिह तिह विधभव जल तरौं॥ एक बोलके चौवीस भेद / भवानी एक, एक ध्यानी अघनासक। रव आकास, एक केवल सव भासत // . मानू इक चले, एक कालानू परसै. समै निरअंस, एक तीर्थकर दरसै // गुरु निरग्रंथ जिहाज सम, एक दया-मारग भला / में जीव रिजुगति करै, एक आप अनुभौ कला॥२॥ एक प्रान चौदहें बंध, इक तेरम जिनवर / एक मेर मरजाद, एक मिथ्यात घातकर // जघन देह इक समे, राजु चौदै उ अनु जावै / धर्म अधर्म विमान, एक वसि सिव पद पावै // सत ग्यान करम विन इक समै, जीव तत्त्व नौ परिनमै / डक नभ प्रदेस बहु देसकौं, ठौर देत जिनवचनमै // 3 // दो बोलके चौवीस भेद। : नौं दुविध जिनराय, जीव निरजीव वखानैं। * सिद्ध और संसार भेद, त्रस थावर जानें // Scanned with CamScanner
SR No.035338
Book TitleDhamvilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDyantrai Kavi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages143
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size61 MB
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