SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 80
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (138) बालक उनर। महाशर महावीर, धीर पर-पीर-निवारन / बडे पुरुष संसार, सार संपतिं सुखकारनी एपंच कुमरपदई सुमर, कठिन सील वालक सिर नाच नौ // 27 // कलपवृच्छ कलपते, चिंततें चिंतामनि मन / पारस हू परसते, करें हित एक जनम जन भगत अकल्प अचिंत, अपरस तिहारी नामी भोभो सब सुख देहि, कौन उपमा है स्वामी हौनिपट सिघिलताके विर्षे, चपल चित्त निसदिन कि निर नाय नमौ० // 28 // महापुरान प्रवान, जान आठों विध वरना वासठ ठान वखान, जान दो लच्छन आसन होय कोय संदेह, नेह करि तहां निहारी। सुद्ध छंद सो सुद्ध, फेरिक कवित समारो॥ हाँ अलपवुद्धि वुद्धनविष, एक बात लीनी पकर। सिर नाय नमो०॥ 29 // जै जै मल ब्रह्मचारिज, अटल चल सकल बनाए। एक एक जिन स्वाम, नाम दस दस गुन गाए॥ सुनत मुनत चित चुनत, धुनत दुख-संतत प्रानी। द्यानतराय उपाय, गाय जिन पाय कहानी // गद जनम जरा मृतु नहिं भगत,भगति एक ओपध विगर। सिर नाय नमों जुग जोरि कर,भो जिनंद भवतापहर३० इति दशस्थानचीवासी। (139) व्यौहार-पचीसी। अरहंतस्तुति-सवेगा इकतीसा / सरवग्यपदधारी तीनलोकअधिकारी, क्रोध लोभ परिहारी ऐसौ महाराज है। सबको समान गिना राग दोप भाव विना, पास नहिं तिना सक सौको सिरताज है // ताहीको वखान्यौ धर्म सोई सांची सोई पर्म, औरको कह्यौ अधर्म झूठको समाज है। सिवपुर बाटकै बटाउनिकों संबलं है, सुखकी दिवैया महाकालमाहिं नाज है // 1 // दयाधर्मखरूप / साध और स्रावक सकलव्रत जातै पल, गलै जास विना सुख संपतिकी जननी / धर्मतरुमूल पाप धूल पुंज महा पौन, विद्या उपजावनकों बड़ी एक गननी / / उच्च मोख भौनकी नसैनी इच्छपद दैनी, जैनी प्रान-दया करौ दोपनिकी हननी / अदयाको नाम दसौं दिसामाहिं सुंन गिना, दया पुन विना एक बात हू न वननी // 2 // दान दियें कहा सिद्धि ध्यान कियें कहा रिद्धि, पाठ पढ़ें कहा वृद्धि जीवनको जोरिक। 1 वटोही-मुसाफिर / 2 कलेबर-पाथेय / 3 दुर्भिक्षके समयमें। 4 अ. नाज-अन्न. Scanned with CamScanner
SR No.035338
Book TitleDhamvilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDyantrai Kavi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages143
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size61 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy