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________________ (129) दौरा। उड़े सुभाय 1.. ( 128) सैनी पंच असैनी पंच, दसौं भेद जलचर तिरजंच। वसों भेद थलचर पसुकाय, दसौं व्योमचर उड़ें सुभा करम भूमि तिरजंच मझार, तीस भेद भाखे निरमा भोग भूमि अय सुनी सुजान, थलचर नभचर दो सर परज अपर्जापति दो भेद, चारि भेद जानी दिन से उत्तम मधम जघन भूतनें, बार भेद जिनागम भने / दोहा। नरी दोसरधान५५ विन खेद। गमभन // 12 // माहि ठानचे, पसु इक सौ तेईस / सब देवक, सतक बहत्तरि दीस // 20 // पवित। परजापत एक सी, छियासी जानिये / अपरजाप्त एक सी, अठ्यासी मानिये // अलबध परजापत जीव, चौतीस है। चव सत पट पर करना, करें मुनीस है॥२१॥ नियत एक चेतनमई, भेद सरय व्यौहार / निहाच अरु व्योहारका, जाननहारा सार / / 22 // सुदया समता आपमें, यह परदया विचार / द्यानत सुपरदया करें, ते यिरले संसार / / 23 / / इति चारगी-छह-जीयममास। -- तेरे भेद मनुष्यके, समझौ गरभ उछेद // 13 // चौपाई। उत्तम भोगभूमि सुख खान, उत्तम पात्रदानफल जाना। मध्यम जघन भोग भुव दोय, चौथे कुभोग भू नर जोय, पंचम मलेछ खंड मझार, छटे आरज गरभज सार। परज अपरज दुवादस जान,अलवधि नर इनमैं नहिं मान 10 अडिल्ल / . नारि जोनि थन नाभि, काखमैं पाइए / नर नारिनक, मल मूतरमें गाइए // 16 // मुरमें संमूर्छन, सैनी जीयरा।। अलबंध परजापती, दया धरि हीयरा // 17 // सोरठा। . नरक पटल उनचास, परज अपरजापत कहे। जीवसमास प्रकास, साताम अहानवे / / 18 / / चौपाई। त्रेसठ पटल सुरगके पाठ, भुवनपती दस व्यंतर आठ / जोतिस पांच छियासीभए, परज अपरजापति गति लए 19 - ध. वि. 9 Scanned with CamScanner
SR No.035338
Book TitleDhamvilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDyantrai Kavi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages143
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size61 MB
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