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________________ कौनैं वरनए॥१७ (94) चारचौं गतिमैं दुःख अपार, पांचपरावर्तन संसार करम काटि जे सिव-पुर गए, तिनके सुख कौनै व 'सिद्धखरूपवर्णन। / दोहा। तीन लोकके सीसपै, ईस रहैं निरधार / छहाँ दरस मानें सदा, एक अंग लखि सार चौपाई। सुर-नर-असुर-नाथ थुति करें, साध त सो पदम ध्यावें ब्रह्मा विष्णु महेस, विन जानें बहु करें कलेसी जो जो दीसे दुख जगमाहि, ताकी एक अंस हू नाहिं।" जा दुखकौंसुख जानै जीव,सरव करम तन भिन्न सदीवर इह भव भै पर भव भै दोय, रोग मरन भै सबको हो रच्छक नहीं चोर भै महा, अकस्मात जीतें सुख लहा॥ देसभूप परभूप विगार, वहु वरसै वरसै न लगार। मूसे तोते टीडी व., सात ईति विन सब सुख सधैं॥२२॥ फरस दंति रस मीन पतंग, रूप गंध अलि कान कुरंग एक एक वस खोवै प्रान, पांचौं नहीं सुखी सो मान॥२३ व्यापै क्रोध लराई करै, व्यापै काम नारि वस परै। व्यापै मोह गहै दुख भूर, जहां नहीं सो सुख भरपूर // 24 दोष अठारह जिनकै नाहिं, गुन अनंत प्रगटे निजमाहिं / अमर अजर अज आनंदकंद, ग्यायक लोकालोक सुछंद२५ व्यापै भूख जलै सब अंग, व्यापै लोभ दाह सरवंग। तन दुरगंध महादुखवास, जहां नहीं सोई सुखरास // 26 1 द्रव्य क्षेत्र काल भाव भव / 2 हाथी / 3 मछली / 4 भोरा / 5 हरिण / दोहा / अमल अनाकुल अचल पद, अमन अवचन अकाय / ग्यानस्वरूप अमूरती, समाधान मन ध्याय // 27 // चौपाई। नरक पसू दोन्यौं दुखरूप, बहु नर दुखी सुखी नरभूप / तातें सुखी जुगलिए जान, तातें सुखी फनेस बखान // 28 तातें सुखी सुरगको ईस, अहमिंदर सुख अति निस दीस। सब तिहुँ काल अनंत फलाय, सोसुख एक समै सिवराय२९ दोहा / परम जोति परगट जहां, ज्यौं जलमैं जलबुंद / अविनासी परमातमा, निराकार निरढुंद // 30 // सिद्धनिके सुख को कहै, जानै विरला कोय / हमसे मूरख पुरुषकों, नाम महा सुख होय // 31 // द्यानत नाम सदा जपै, सरधासौं मनमाहिं। सिववांछा वांछाविना, ताकौं भौदुख नाहिं // 32 // ___ इति सुखवत्तीसी। Scanned with CamScanner
SR No.035338
Book TitleDhamvilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDyantrai Kavi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages143
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size61 MB
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