________________ धार। - tirrn ( 92 ) अथ सुखवत्तीसी। . दोहा। / सिद्ध सरव बंदौं सदा, सुखसरूप चिद्रूप / जाकी उपमा देनकौं, वसत न तिहुँजगभूप // - सिद्धोंका सुखवर्णन / चौपाई। जो कोई नर औगुनधार, नख सिख बंध बँध्यौ निशा एक सिथिल कीलें सुख होय, सब टूटें ता सम नहिं कोय। वाय पित्त तप कफ सिर-वाह, कोढ़ जलोदर दम अस एक गए कछु साता गहै, सरव गए परमानंद लहै॥ एक सास्त्र जो पढे पुमान, कछु संदेह होय हैरान / ताकौं समझै हरष अपार, क्यों न सुखी सव जाननहार पत्र दोहा। / नरक गरभ जनमन मरन, अधिक अधिक दुख होय। जहाँ एक नहिं पाइयै, सुखिया कहियै सोय // 5 // नरकदुःख। तन दुख मन दुख खेत दुख, नारक असुर करंत / पांचौं दुख ये नरकम, नारक जीव सहंत // 6 // तिर्यंचदुःख / भूमि खोदि जल गरम करि, अगिनि दाह दुख जोय / पौन बीजना तरु कटें, त्रस निरोध दुख होय // 7 // चौपाई छुधा तृषा करि पीड़ित रहै, गलमैं फाँस सीस तप सहै। मार खायअरु मोल विकाय, विन विवेक पसुगति दुख दायर (93) खग मृग मीन दीन अति जीव, मारै हिंसक भाव सदीव। तेहू मरें महा दुख पाय, भौभौ वैर चल्यौ सँग जाय // 9 // मनुष्यगतिदुःख / हीन होय अरु गर्भ विलाय, जनमत मरै ज्वान मर जाय। इष्ट वियोग अनिष्ट सँयोग, महादखी नर व्याप सोग।॥१०॥ मूतनि हगनि महा दुख वीर, द्रव्य उपावन गहर गंभीर / चाहदाहदुख कह्यौ न जाय, धन्न सिद्ध अविनासी काय 11 दोहा / रूखा भोजन करज सिर, और कलहिनी नार / चौथे मैले कापड़े, नरक निसानी चार // 12 // उद्दिम बिन अरु मांगना, बेटी चलनाचार / सब दुख जिनके मिट गए, तेई सुखी निहार // 13 // चौपाई। रस-लोहू-अरु मांस वखान, मेद हाड़ अरु मज्जा जान / वीरज सात धात नहिं जहां, सुद्ध सरूप विराज तहां // 1 // दोहा / कान आंख मुख नाक मल, मूत पुरीपं पसेव / सातौं मल जाकै नहीं, सोई सुखिया देव // 15 // देवगतिदुःख / चौपाई। हीन होय पर-संपति देख, मरन वार दुख करै विसेख / . देव मरै एकेंद्री होय, जनम मरन वसि डोल सोय // 13 // 1 पक्षी। 2 पाखाना / 3 पसीना। . . . . . Scanned with CamScanner